SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 250
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७१ तहं पढमु चविउ मिहिलापुरीइ, मल्लो-नमिजम्मि सुहंकरोइ । जयसेण राय वणमालपुत्त, उप्पन्नउ पउमरहु त्ति वुत्तु ॥२४॥ तसु देवि पुप्फमालाभिहाण, अंतेउरीण गुणगणपहाण । सो हुउ कमेण य पवर राउ, बीओ वि चविओ तुह पुत्तु जाउ ॥२५॥ विवरीयसिक्ख तुरएण हरिउ, सो राउ फिरइ अडवी सइ तुरिउ । पिक्वेविणु तुह सुउ अइसुचगु, नेयइ नियनयरिं हरिसियंगु ॥२६॥ इय कयवद्धावणु तोसियपुरजणु, नमिय नराहिव सयल जसु । निरुवमगुणगामू नमि किय नामू, वद्धइ वद्धियविमलजसू ॥२७॥ कडवक ४ इत्थंतरि सग्गह वरविमाणु, तसु मज्झि देउ इंदह समाणु । अवयरिउ विमलगुणगणह गेह, तिपयाहिणि पणमिय मयणरेह ॥२८॥ अह पच्छा वंदइ मुणिवरिंदु, तउ चित्ति चमक्किउ खेयरिंदु ।। संदेहावणयणु तियसी किउ, नियचरिउ कहिउ अक्खेवणीउ ॥२९॥ तउ तोसिउ भावइ खयरराउ, बपुबपु रि अहो धम्मह पभाउ । जीवहं तावं चिय होइ दुक्खु, जावइ न लडु जिणधम्मलक्खु ॥३०॥ धम्मगुरु भणिय तियसेण वुत्त, किमहं करेमि आगमनिउत्त । तउ एउ मयणरेहाइ वुत्तु, मिहिलापुरोइ मह दंसि पुत्तु ॥३१॥ तहिं वंदिय विहिणा तित्थसार, अनु गुरुणीए णमिय सोवयार । तद्दे सणसवणिहिं गयसिणेह, पवन पव्वज्जइ मयणरेह ॥३२॥ कय सुव्वयनामा तवु तवेइ, सो सुरु सकप्पि सुहु अणुहवेइ । अह पिउणा नमि परिणावियाउ, अट्ठोत्तरु सहसु सुबालियाउ ॥३३॥ अह रन्ना जाणि विभव असारु, नियपइ पइठाविउ नमिकुमारु । . अप्पणि वउ पालिउ निरइयारु, केवलसिरि सोहिउ सिद्धसारु ॥३४॥ अह नमी नरा हिवु हूउ, पयंडु तसु हत्थिरयणु आलाणदंडु । पाडेविणु बहु पडिकारवग्गु, गुरुवेगि सुदंसणपुरि विलग्गु ॥३५॥ सुचंदयसि नहिवि बहुविहि, वाहिवि वसि किउ निसंकिउ धरिउ । तउ नमि तसु कारणि बहुपरिवारि, णिजाइउ पुर रोहइ तुरिउ ॥३६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002639
Book TitleMadanrekha Akhyayika
Original Sutra AuthorJinbhadrasuri
AuthorBechardas Doshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1973
Total Pages304
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy