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कडवक २ तउ अंग-पखालणि सरयम्मि, गहिया जल-करिहिं करेण तम्मि । विज्जाहरि धरिया तक्खणेण, वेयहि नीय गिहिणी मणेण ॥११॥ तउ भणियउ खयरु महासईइ, मह पुत्तु उपन्नु महाडवीइ । सो तह-छुहाए पाण-चाउ, मा कुणउ तमाणह काणणाउ ॥१२॥ महिलाहिव पउमर हेण नीउ, निय-भवणि वधारइ सुउ भणोउ । पन्नत्तिविज्ज मह कहिउ एउ, ता सुयणु म काहिसि चित्त-खेउ ॥१३॥ अनु सुणि वेयड्ढे खयर-राउ मणि-चूडु सुसेविय वीयराउ । निय-पुत्तु पइट्ठिउ नियय-रज्जि, सो अप्पणि लग्गउ परम-कज्जि ॥१४॥ सो भयवं पच्छिम-वासरम्मि, पत्तउ नंदीसरतित्थि रम्मि । तसु सुउ हुँ मणिपहनामधेउ, ता मइं पइ मन्नसु तुहु अखेउ ॥१५॥ तो भणइ महासइ गुणकरम्मि, वंदावि देव नंदीसरम्मि । तउ तिणि संतोसिहिं तत्थ नीया, वंदइ चेईहर सुयविणीय ॥१६॥ ता वंदिय दोहि वि सुगुरुराउ, गुरु-देसणि नटुउ दुट्ठ-भाउ । तो नमइ खयरु भइणी भणित्तु, तं खमह महासइ मई जु वुत्त ॥१७॥ अह तत्थ महासइ हुयउ संसइ पुच्छइ निय-पुत्तह चरिउ । तीसे मणु तोसइ मुणिपहु भासइ, सुणि नियमणु निच्चलु धरिउ ॥१८॥
कडवक ३ पुक्खलवइ विजय विदेहवासि, मणितोरण पुरु वेयड्ढि आसि । चक्कीसर अमियजसस्स पुत्त, पुप्फसिहो रयणसिहो य वुत्त ॥१९॥ तो दुन्नि वि चुलसीपुवलक्ख, काऊण रज्जु भवतरणदक्ख । चारणमुणि गाहिय दुविह सिक्ख, कय संजम सोलस पुव्वलक्ख ॥२०॥ तो अच्चुय इंद समाण देव, उप्पन्ना पुन्निहिं निरवलेव । तउ चविओ धायइखंडखित्ति, जिणरायपायपंकयपवित्ति ॥२१॥ हरिसेण हरिहि सुय परममाण, इगु सागरदेव भिहाणु ताण । अनु सागरदत्तु ति बेमि दक्ख, दढसुव्वय जिणवर दिन्न दिक्ख ॥२२॥ विज्जूनिवाय तइए दिणम्मि, महसुक्कि उप्पन्ना सुहनिहिम्मि ।
सत्तरस अयराउय तत्थ ठोय, सुर सुक्खु अणोवमु अणुहवीय ॥२३॥ १. मिथिलाधिपेन इति ।
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