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कडवक ५ तउ मयणरेह गुरुणीमईइ, पडिबोहिय दो वि महासईइ । निय भाय समप्पिय सयल रज्जु, चंदजसु राउ साहइ सकज्जु ॥३७॥ नमि दो वि रज्ज पालइ नएण, वद्धइ धणेण नायागएण । तसु अन्नयाइ छम्मास दाहु, निय देहि हूउ विज्जहं अगाहु ॥३८॥ अंतेउरीउ चंदणु घसंति, वलयज्झुणि सवणा पीडयंति । इक्विक्कु धरिउ तास वि मुयंति, निवु पुच्छइ किं न हु झणहणंति ॥३९॥ पुहईसर देवी अवणियाई, इह दुहवंति बहु मेलियाई । जइ कह वि एह रोगाउ मुक्कु, ताहं गहेसु संजमु अचुक्कु ॥४०॥ नरवइ इमाइ चिंताइ सुत्तु, मेरुम्मि सुविण वियणा विउत्तु । कन्नाडि कडक्खिहिं नेय खुडु, चोडीणं चाडुयहिं न रुडु ॥४१॥ लाडी लडहत्तिहिं नेव भिन्नु, गउडी गीयाईहिं न य निसन्नु । नियपुत्त पइट्ठिउ निययरज्जि, अप्पणि पहु लग्गइ मुक्ख कज्जि ॥४२॥ अह चित्ति चमकिउ सक्कु एइ, दियरूवि निउण पुच्छा करेइ । नमि निम्ममत्त सयणाइएसु, पच्चक्ख हूउ थुणई सुरेसु ॥४३॥ पय निज्जिय दुज्जय भड कसाय, पइ सामि महिय विसय पिसाय । को तिहुयणि तुह समु समणसीह, पत्तेय तुज्झ[बुद्ध पई लीद्ध लिह ॥४४॥ ति पयाहिणाहिं नमिऊण सक्कु, सोहम्मि जाइ मुणिगुण अमुक्कु । रायरिसि बिहप्फइ जिम सुवक्कु, पुण जगगुरु वक्कत्थ मणमुक्कु ।।४५॥ गंगापवाहु जिंव सुमण इंदु, परिवंकउ जडमउ नेव दिछ । अप्पप्पणकतिहिं जुअ अणेय, गोवइसंगिई पुण विगयतेय ॥४६॥ तं पहु पहाइ परिवट्टमाणु, हूअउ पुण अणुवम गुणनिहाणु । विहरंतु पत्तु पुरि खिइपइट्ठि, पत्तेयबुद्ध तहिं हुअ गोट्ठि ॥४७॥ करकंडु दुमुह नग्गइ पसिद्ध, चउरो वि एगसमएण सिद्ध ।
आवस्सगाइगंथिहिं जु वुत्तु, तह इत्थ कहिउ भव्वह निरुत्तु ॥४८॥ इय वैयमिय कडविहिं विरइउ भाविहिं
मयणरेह नमिरिसि चरिउ । "जिणपहऽणुसरंतहं गुणत सुणतहं।
निहणउ भवियहं तमु तुरिउ ॥४९।। १ व्रतमित मरले बतनी-महानतनी सध्या या अर्थात् पांय २ जिणपह ॥ शw६ हाय जिनप्रभ मे र्नुि नाम सूयताम.
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