SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 204
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगमप्रमाणनिरूपण १८९ आगम कहा जाता है, चाहे वह शब्दात्मक हो अथवा ज्ञानात्मक । 'परोक्षानुभव - साधनमागमः'-यह लक्षण करने पर अनुमान प्रमाण में अतिव्याप्ति हो जाती है, इसलिये 'समयबलेन' संयोजित किया गया है। अनुमान प्रमाण अविनाभावरूप व्याप्ति का सहारा लेकर परोक्षज्ञान को जन्म देता है, समय या संकेतज्ञान के आधार पर नहीं । शब्द आगम प्रमाण है, वह समयपदाभिहित ईश्वरीय इच्छारूप संकेतज्ञान के द्वारा परोक्षज्ञान को जन्म देता है। यदि कोई अविनाभाव और समयरूप द्वारों को अभिन्न करना चाहे, तो उसका निराकरण करने के लिये आचार्य भासर्वज्ञ कहते हैं कि वे दोनों एक नहीं, अपितु उनमें बहुत बड़ा अन्तर है ।। साध्य और साधन के स्वाभाविक सम्बन्ध को अविनाभाव कहा जाता है, किन्तु बोधक और बोध्य के पुरुषेच्छाजनित सम्बन्ध को समय कहा जाता है, बोध्य तथा बोधक में अविनाभाव नहीं होता । शबर स्वामी शब्दार्थ के सम्बन्ध का स्पष्टीकरण आक्षेप और समाधान के द्वारा इस प्रकार करते हैं - 'स्यादेतदेवं नैव शब्दस्याथेन सम्बन्धः । कुतोऽस्य पौरुषेयताऽपौरुषेयता वेति । कथम् ? स्याच्चेदर्थेन सम्बन्धः क्षुरमोदकशब्दोच्चारणे मुखस्य पाटनपूरणे ग्याताम यदि संश्लेषलक्षण संबन्धनभि. प्रेत्योच्यते कार्यकारण-निमित्तनैमित्तिकाश्रयायिभावादयन्तु संबन्धाः शब्दस्यानुपपन्ना एवेति । उच्यते । यो यत्र व्यपदेश्यः संबन्धस्तमप्येकं न व्यपदिशति भवान्प्रत्याय्यस्य प्रत्यायकस्य च संज्ञासंज्ञिलक्षण इति । शब्द और अर्थ का संज्ञा शिसम्बन्ध शाब्द प्रमा का माध्यम है। अनुमान प्रमाण का माध्यम अविनाभाव है । परोक्षज्ञान के जनक अनुमान प्रमाण और शब्दप्रमाण दोनों है. किन्तु द्वार भिन्न-भिन्न है। समयसामर्थ्य से शब्द कहीं-कहीं पर संशय और विपर्यय तथा असद्वस्तु का भो बोधक हो जाता है, परन्तु वह प्रमा नहीं है, जैसाकि कुमारिल ने कहा है 'अत्यन्ताऽसत्यपि ज्ञानमर्थे शब्दः करोति हि । तेनोत्सर्गे स्थिते तस्य दोषाभावात्प्रमाणता ॥ संशय तथा विपर्यय में अतिव्याप्ति के निराकरणार्थ लक्षण में 'सम्यक्' विशेषण दिया गया है। ख पुष्प इत्यादि शब्दों के द्वारा अवश्य कुछ न कुछ अर्थबोध होता है, किन्तु बह बाधितविषय होने के कारण अप्रमा कहलाता है, प्रमा नहीं, क्योंकि सम्यक ज्ञान अबाधितविषयक होता है। ___ सविकल्पक प्रत्यक्ष भी सम्यक् अनुभव होता है, परन्तु परोक्ष नहीं । अतः 'परोक्ष' शब्द सविकल्पक प्रत्यज्ञ में आगमलक्षण की अतिव्याप्ति का निवर्तक है। यद्यपि औषनिषद मत में 'दशमस्त्वमसि' इत्यादि वाक्यों के समान 'तत्त्वमसि' आदि 1. समयाविनाभावयोर्वलक्षण्यं पश्यामस्तेनानुमाने प्रसंग: समयग्रहणेन न निवर्तितः ।, -न्या. भू., पृ. ३९६ 2. मीमांसादर्शन (आनन्दाश्रम संस्कृत-प्रन्थावली, १९२९), पृ. ४३ 3. मीमांसा लोकवार्तिक, सूत्र २, का. ६, पृ. ४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002638
Book TitleBhasarvagnya ke Nyayasara ka Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshilal Suthar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, & Philosophy
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy