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________________ न्यायसारं यहां वक्ताने गौणार्थ (मंचस्थ पुरुष) के अभिप्राय को लेकर मंच शब्द का प्रयोग किया है, किन्तु छलवादी मंच शब्द के मुख्यार्थ को लेकर यदि यह कहे कि मंचस्थ पुरुष चिल्लाते हैं, मंच नहीं, क्योंकि मंच अचेतन है। इस प्रकार जो वादो के वचन को प्रतिषेध किया जाता है, वह उपचार छल है । यहां भी छलवादी निगृहीत है, क्योंकि यदि प्रतिवादी के. अभिप्राय को न समझ कर उसके वचन का प्रतिषेध करता है, तो अप्रतिपत्ति निग्रहस्थान से निगृहीत है। यदि समझ कर करता है, तो वक्ता के अभिप्राय से विपरीत अर्थ समझने के कारण विप्रतिपत्तिरूप निग्रहस्थान में निगृहीत है, क्योंकि लोक और शास्त्र में मुख्य तथा गौण दोनों प्रकार से शब्दों का प्रयोग देखा जाता हैं। जहां मुख्यार्थ के अभिप्राय से प्रयोग होता है, वहां मुख्यार्थ का ही स्वीकार या प्रतिषेध होना चाहिये तथा जहां वक्ता ने गौण शब्द का प्रयोग किया है, वहां उसके गौण अर्थ का ही स्वीकार या प्रतिषेध करना चाहिए । किन्तु यहां वैपरीत्य है । वक्ता ने गौणार्थ के अभिप्राय से शब्द का प्रयोग किया है और प्रतिवादी मुख्यार्थ के अभिप्राय से उसका प्रतिषेध कर रहा है। जातिलक्षणविमर्श : भासर्वज्ञ ने जाति का सामान्य लक्षण 'प्रयुक्ते हि हेतौ समीकरणाभिप्रायेण प्रसंगो जातिः'1 किया है । अर्थात् किसी साध्य-विशेष की अनुमिति के लिये वादी द्वारा हेतु का प्रयोग करने पर प्रतिवादी वादी के पक्ष के साथ समानता (समीकरण') के अभिप्राय से जो दोषोभावन करता है, उसे जाति कहते हैं। जैसे-वादी नैयायिक अथवा वैशेषिक शब्द के अनित्यत्व के साधक शब्दोऽनित्यः क्रत पटवत्' इस अनुमानवाक्य का प्रयोग करता है। इस पर जातिवादी मीमांसक वादी के अनुमानवाक्य में दोषान्वेषण करने में असमर्थ होकर निरर्थक अनिष्ट आपत्तियां उठाने का प्रयास करता है कि जैसे शब्द पट की तरह कृतक होने से अनित्य है, उसी प्रकार शब्द अमूर्त होने के कारण आकाश की तरह नित्य होना चाहिये । इस प्रकार शब्द में अनित्यत्वसिद्धि के लिये वादी द्वारा कृतकत्व हेतु प्रयुक्त करने पर प्रतिवादी वादी के पक्ष से साम्यप्रतिपादन की दृष्टि से शब्द में 'शब्दो नित्योऽ. मूर्तत्वादाकाशवन्' इत्याकारक अनुमानवाक्य का प्रयोग कर नित्यत्व की सिद्धि के लि! अमूर्तत्व हेतु का प्रयोग करता है । अनित्यत्व का खण्डन करता हुआ प्रतिपक्षी वादी के साथ समता सिद्ध करता है। अर्थात् जैसे नैयायिक पटादिदृष्टान्त से कृतकत्व हेतु के द्वारा शब्द में अनित्यता सिद्ध कर सकता है, तो मैं मीमांसक भी आकाशदृष्टान्त से अमूर्तत्व हेतु के द्वारा शब्द में नित्यत्व सिद्ध कर सकता हूं। इस प्रकार अनित्यत्वसाधक कृतकत्व हेतु में दोषोद्भावन करता है, इसे ही जाति 1. न्यायसार, पृ. १७ 2 (अ) प्रतिपक्षणा विशेष प्रतिपादनं समीकरणम् |-न्यायभूषण, प्र, ३१२ (ब) समीकरणार्थः प्रयोगः समः।-न्यायवार्तिक, ५।२।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002638
Book TitleBhasarvagnya ke Nyayasara ka Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshilal Suthar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, & Philosophy
File Size14 MB
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