SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ न्यायसार पदों से न्यायसार के टीकाकार तथा अन्य तार्किकों ने उनका समादर किया है। परिचय नामक प्रथम विमर्श में उन्हीं के नाम, देश, कल, विद्यास्तोत्र, व्यक्तित्व और कृतित्व का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत करने का प्रयाय किया जा रहा है। नाम भासर्वज्ञ नाम अत्यन्त विलक्षण प्रतीत होता है । वास्तव में उनका पूरा नाम भावसर्वज्ञ था । गणकारिका की प्रस्तावना में चिमनलाल डी. दलाल महोदयने यह उल्लेख किया है कि वैरावल प्रशस्ति (बलभी संवत् ८५०). और अचलगढ़ शिलालेख में उल्लिखित पाशुपत आचार्यो के भावबृहस्पति, भावज्ञ और भावशंकर आदि नामों से यह ज्ञात होता है कि 'भाव' शब्द पाशुपत आचार्यों के नाम से पहिले प्रयुक्त होता था । अपि च, न्यायभूषण के प्रथम परिच्छेद के अन्त में भावसर्वज्ञ नाम का उल्लेख किया गया है। अतः यह प्रतीत होता है कि भा' भाव का संक्षिप्त रूप है। भासर्वज्ञ नाम ही लोकप्रिय है, क्योंकि न्यायसार के टीकाकारों तथा अन्य ग्रन्थकारों ने इसी नाम का प्रयोग किया है । देश संस्कृत-वाङ्मय के अधिकांश प्राचीन विद्वानों की यह प्रवृत्ति रही है कि उन्हों ने अपने ग्रन्थों में देश-काल का उल्लेख नहीं किया है। भासर्वज्ञ भी उनके अपवार नहीं है। परन्तु उनके देश के विषय में विद्वानों की प्रायः सुनिश्चित धारणा है कि वे काश्मीर प्रदेश के निवासी थे । उनकी शिवभक्ति से भी इसकी पुष्टि 1. गणकारिका, भूमिका, पृ. १ 2. इति श्रीमदाचार्यभावसर्वज्ञविरचिते । न्यायभूषणे संग्रहवाति के प्रथमः परिच्छेद: समाप्तः । -न्यायभूषण, पृ. १८७. 3. (अ) The curtain rises with the appearance on the scene of Bhasarvajna, the author of Nyayasara, in Kashmir....Kaviraj, Gopinath. Glean. ings from the History and Bibliography of the Nyāyavaiserika Literature, P. 2 (ब) He seems to me to have been a native of Kashmir. - Vidyabhusana, S.C. -A History of Indian Logic, P. 357. (स) ...Bhasarvajna, who very probably belonged to Kashmir,... -Bhatta. ____charya, D.O. -History of Navya-Nyaya in Mithila. P. 37. (द) भासर्वज्ञ प्रायः काश्मीरी ब्राह्मण थे । -न्यायदर्शनपरिचय, प्रथमखण्ड, १ १७. 4. (अ) प्रणम्य शम्म जगतः पतिं परम् ।-न्यायसार, मंगलाचरण- श्लोक (ब) तस्माच्छिवदर्शनान्मोक्ष इति ।-न्यायसार, पृ. ३९, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002638
Book TitleBhasarvagnya ke Nyayasara ka Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshilal Suthar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, & Philosophy
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy