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________________ प्रथम विमर्श परिचय कुमकुम - केसर को प्ररोहस्थली काश्मीर प्रदेश जिस प्रकार अपनी अनुपम प्राकृतिक सुषमा के कारण पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र हैं, उसी प्रकार प्राचीन काल में बौद्ध, ब्राह्मण, न्याय, शैव प्रत्यभिज्ञादर्शन तथा अन्य दर्शनसम्प्रदायों के परिपक्व चिन्तन की दृष्टि से प्रज्ञावानों के लिये स्पृहणीय रहा है । न्यायशास्त्र के विकास के मध्यकालीन युगमें वहां बौद्ध और ब्राह्मण न्याय की साथ-साथ समृद्ध होने लगे । काश्मीर न्यायसम्प्रदाय के नैयायिकोंने एकान्तः वात्स्यायन और वार्तितकार का अनुगमन नहीं किया है, उनमें स्वतन्त्र चिन्तनप्रवृत्ति का विकास हुआ । उस सम्प्रदाय में आचार्य भाज्ञ के पूर्ववर्ती नैयायिक भट्ट साहट, जयन्त भट्ट. विश्वरूप, प्रवर आदि थे । उनके साथ आचार्य भासर्वज्ञ का सम्बन्ध अब तक स्पष्टतया परिज्ञात नहीं हो पाया है । न केवल काश्मीर न्यायसम्प्रदाय में, अपितु मध्यकालीन समस्त नैयायिको में आचार्य भासर्वज्ञका क्रान्तिकारी नैयायिक के रूप में महत्त्वपूर्ण स्थान है । गुरु, आचार्य, परमाचार्य तार्किक सार्वभौम, 8 वार्तिककृत् *, भूषणकार, " न्यायालङ्करण, न्यायसारतर्क सूत्र विधायक, ' शाखकारचक्रचक्रवती, पाशुपताचार्य, १ – इन सन्मानसूचक 1. ( अ )... इत्याह नो गुरुः । -- -न्यायमुक्तावली, प्रथम भाग, पृ २३ (ब) सम्यक् पदादि वदति स्म गुरु: कृपालुः ॥ - वही, पृ. ११४ 2. न्यायमुक्तावली, प्रथम भाग, पृ. ५७,८०,०३, १७६ इत्यादि. 3. परमाचार्यतार्किक सार्वभौमश्रीमा सर्वज्ञ प्रणीते न्यायसारप्रकरणे आगमपरिच्छेदः समाप्तः न्यायसार, निर्णयसागर संस्करण, १९१०, पृ. ३२ 4. तदेतद्विचारासहतया तितुच्छ मितिज्ञापनार्थ प्रतिज्ञामात्रमेवात्र वार्तिककृता कृतं सम्यगिति । -- न्यायसारविचार, पृ. २८. 5. भूषणकारस्तु तथाभूतार्थं निश्च" स्वभावत्वं सम्यक्त्वम् । - न्यायतात्पर्यदीपिका, पृ. ५६. 6. न्यायालङकरण त्रिलोचनवचस्पत्याह्वयान् हेलया । —ज्ञान श्रीनिबन्धावलि, पृ. १५६. 7. भासर्वज्ञो न्यायसारतर्कसूत्र विधायकः । - षड्दर्शनसमुच्चय ( राजशेखरकृत) 8. ...शास्त्रकारचकचक्रवर्ती श्रीभासर्वज्ञाचार्यः प्रथमपद्येन प्रतिजानीते । — न्यायतात्पर्यदपिका, पृ ४४. 9. पाशुपताचार्य श्रीभासर्व ज्ञप्रणीत न्यायभूषणोपलब्ध्या अनया लोकोत्तरमानन्दसन्दोहमनुबो मबीत्ययम् । - म.म. गोपीनाथ कविराज -- न्यायभूषण का उपादुघात, भान्या - १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002638
Book TitleBhasarvagnya ke Nyayasara ka Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshilal Suthar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, & Philosophy
File Size14 MB
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