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________________ ૨૨૪ उदाहरणाभास का लक्षण देते हुए भासर्वज्ञाचार्य कहते हैंउदाहरणलक्षणरहिताः उदाहरणवदव भासमाना उदाहरणाभासाः । 1 हेत्वाभासलक्षण की तरह यहां भी 'तल्लक्षणरहितत्व विशेषण दिया गया हैं । समीचीन उदाहरणों में उदाहरणाभास के लक्षण को अतिव्याप्ति के निवारणार्थ इस विशेषण की सार्थकता है । आचार्य भासर्वज्ञ की मान्यता है कि वैसे तो उदाहरणाभास अनेक प्रकार के हैं, परन्तु साध्यविकल, साधनविकल इत्यादि आठ अर्थदोष और ४ वचनदोष- इन्हीं १२ भेदों को ही अनेक पूर्वाचार्यों ने स्वीकार किया है, अतः उन्हीं का प्रारम्भ में नामोल्लेख किया गया हैं । उनके भेदों को प्रतिपत्ति के लिये उदाहरण भी बारह ही दिये गये हैं । ग्रन्थगौरव के परिहारार्थ भासर्वज्ञ ने अनित्यं मनो मूर्तस्वात् ' इस वाक्यप्रयोग में ही समस्त उदाहरणामासों को उदाहृत कर दिया है । साधर्म्यदाहरणाभास 6 १. साध्यविकल : 'अनित्यं मनो मूर्तस्वात् परमाणुत्रत्' इस अनुमान में 'यन्मूर्त तदनित्यं दृष्टम् यथा परमाणुः' यह परमाणुरूप उदाहरण अनित्यत्वरूप साध्य से विकल है । २. साधनविकल : न्यायसार · उपर्युक्त अनुमान में ही कर्मरूप दृष्टान्त मूर्तस्वरूप साधन से विकल है, क्योंकि कर्म मूर्त नहीं है । ३. उभयविकल : 'यथाकाशम् ।' यहां दृष्टान्त आकाश अनित्यत्व और मूर्तत्व दीनों से विकल है, क्योंकि आकाश न अनित्य है और क्रियारहित होने से न मूत ही है । ४. आश्रयहीन : 'खविषाणम् ।' खरविषाण का अत्यन्त असत्त्व है । अतः धर्मिरूप आश्रय के अभाव में साध्य तथा साधन धर्मों के व्याप्यव्यापकभाव की प्रतीति उसमें नहीं हो सकती । 1. व्यायसार, गृ. १३ 2. न्यायभूषण, पृ ३२२. ५. अव्याप्त्यभिधान : 'अनित्यं मनो मूर्तत्वात् घटवत् ।' यहां 'घटवत्' इत्याकारक दृष्टान्तवचन 'यद्यन्मूर्त तदनित्यम्' या 'यन्मूर्त' तत्सर्वमनित्यम्' इस व्याप्ति को नहीं बतला रहा है, क्योंकि ' यद्यन्मूर्त तदनित्यम् यथा घटः' इत्याकारक वचन से व्याप्ति की प्रतीति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002638
Book TitleBhasarvagnya ke Nyayasara ka Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshilal Suthar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, & Philosophy
File Size14 MB
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