________________
१२५
के अनुमान का स्वार्थ में तात्पर्य है, अतः अनुमान यहां आगम से बलवान् है । प्रमाणों में स्वार्थपरत्व तथा अन्यार्थपरत्व ही उनके बलाबलत्व का नियामक है ।
अनुपान ! प्रमाण 1
४. प्रत्यक्षैकदेशविरुद्ध :
'सर्व तेजोऽनुष्णम् रूपत्वात्' । इस अनुमान में रूपेत्व हेतु से साध्यमान सकल तेजोनिष्ठ अनुगत्व सकल तेजोद्रव्य के एकदेश सौरादि तेज में स्पार्शन प्रत्यक्ष से सिद्ध होने से प्रत्यक्षैकदेशविरुद्ध है ।
५. अनुमानैकदेशविरुद्ध
'नित्याश्रयाः सर्वे द्रवत्वरूपरसगन्धस्पर्शा नित्या अप्रदेशवृत्तिसमान जात्यारम्भकत्वे सति परमाणुवृत्तित्वात् तद्गतैकत्वादिवत्' ।
संयोग, विभाग समानजातीय गुण के आरम्भक और परमाणु में समवेत होते हैं. अतः हेतु की उनमें अतिव्याप्ति के निवारणार्थ अप्रदेशवृत्ति दिया गया है । अनेकत्व सख्या असमानजातीय परिमाण की आरम्भक होती है । जैसे, द्वयणुकगत वित्र संख्या यणुक के अणुत्वजातीय परिमाण से भिन्न त्रसरेणुगत महत्परिमाण को उत्पन्न करती है | अतः उसकी व्यावृत्ति के लिये समानजात्यारम्भकत्व' दिया गया है । इस अनुमान से साध्य निव्यत्व नैमित्तिक द्रवत्व, पाकज रूपादि के उत्पाद्यत्वहेतुक अनित्यत्वानुमान से विरुद्ध पड़ता है, सांसिद्धिक द्रवत्व, अनादि परमाणुरूपादि के नियत्र का किसी अनुमान से विरोध नहीं है । अतः यह अनुमानैकदेशविरुद्ध का उदाहरण है ।
६. आगमैकदेशविरुद्ध :
यथा- 'सर्वेषां देवर्षीणां शशेराणि पार्थिवानि शरीरत्वादस्मदादिशरीरवत् ।
वरुण, आदित्य, वायु आदि कतिपय देवों के शरीर जलीय, तेजस तथा वायवीय सुने जाते हैं । अतः सभी देवर्षियों के शरीरों के पार्थिवत्व का साधक प्रकृत अनुमान आगमैकदेशविरुद्ध है ।
प्रकरणसम
सूत्रकार ने 'यस्मात् प्रकरणचिन्ता स निर्णयार्थमपदिष्टः प्रकरणसमः 1 यह प्रकरणसम का लक्षण किया है । भाष्यकार ने इसकी व्याख्या करते हुए कहा हैं कि संशय के विषय, अनिर्णीत पक्ष व प्रतिपक्ष 'प्रक्रियते साध्यत्वेनाधिक्रियते' इस व्युत्पत्ति से प्रवरसम कहलाते हैं । संशय से लेकर निर्णय से पूर्व तक तत्त्वानुपलब्धि के कारण उस पक्ष प्रतिपक्षरूप प्रकरण का संशय जिस हेतु से बना रहता है, उस हेतु का यदि निर्णयार्थ प्रयोग किया गया है, तो उसे प्रकरणसम कहते हैं । जैसे'शब्दो नित्योऽनित्यधर्मानुपलब्धेः,' 'शब्दोऽनित्यो नित्यधर्मानुपलब्धेः इन अनुमानप्रयोगों 1. न्यायसूत्र, १/२/७
2. न्यायभाष्य, १/२/१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org