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________________ अनुमान प्रमाण हेतुप्रयोगकाल का अतिक्रमण कर जिस हेतु का कथन किया जाता है, वह कालात्ययापदिष्ट है । प्रत्यक्ष तथा आगम प्रमाण से अबाधित साध्यविशिष्ट पक्ष का परिग्रहकाल ही हेतु का प्रयोगकाल है । अतः प्रत्यक्षादि प्रमाण द्वारा बाधित साध्यविषयक हेतु हेतुप्रयोगकाल का अतिक्रमण करने से कालात्ययापदिष्ट कहलाता है, इस रीति से जयन्त भट्ट ने भी कालात्ययापदिष्ट का अर्थ बाधित है, यह स्पष्ट कर दिया है। इसीलिये तदनुसारी भासर्वज्ञ ने कालात्ययोपदिष्ट व बाधित के एक होने से बाधित का उदाहरण कालात्ययापदिष्ट के उदाहरण रूप से प्रस्तुत किया है। बाधिक संज्ञा का स्पष्ट उल्लेख न करने पर भी बलवान् प्रमाण द्वारा बाध बतलाकर इन आचार्यों ने इसकी बाधित संज्ञा के लिये अपनी अभ्यनुज्ञा दी है। पंचरूपोपपन्न हेतु के अबाधितविषयत्व का यह व्याघात (बाध) करता है, अतः इसकी बाधितविषय संज्ञा उचित है । इसीलिये परवर्ती ग्रन्थकारों ने इसे कालात्ययापदिष्ट के अतिरिक्त बाधितविषय, बाध अथवा बाधित संज्ञा भी दी हैं । कालात्ययापदिष्ट का भासर्वसम्मत अर्थ उनके द्वारा दिये गये प्रथम उदाहरण से स्पष्ट हो जाता है। आचार्य भासर्वज्ञ ने इस हेत्वाभास के जयन्तभट्टकृत तोन भेदों के अतिरिक्त ३ भेद और किये हैं। वे ६ भेद इस प्रकार हैं१ प्रत्यक्षविरुद्ध ४. प्रत्यक्षकदेशविरुद्ध २. अनुमानविरुद्ध ५. आगमैकदेशविरुद्ध ३. आगमविरुद्ध ६. अनुमानकदेशविरुद्ध १. प्रत्यक्षविरुद्ध : जिस हेतु का विषय (साध्य) प्रत्यक्ष प्रमाण से अपहृत हो, उसे प्रत्यक्षविरुद्ध कालात्ययापदिष्ट कहते हैं । यथा-'अनुप्णोऽयमग्निः कृतकत्वात् । अग्न्यादि में स्पार्शन प्रत्यक्ष से उष्णत्व सिद्ध होता है और अनुष्णत्व के साधक अनुसान से उष्णत्वसाधक प्रत्यक्ष प्रमाण ज्येष्ठ व उपजीव्य होने से अधिक बलवान् है। २. अनुमानविरुद्ध : जैसे-'अनित्याः परमाणवः मृतत्वान्' । यद्यपि केवल अनुमान से अनुमान का बाध संभव नहीं होता, तथापि प्रत्यक्ष से अनुमानबाध की तरह बलवान् अनुमान द्वारा दुर्बल अनुमान का बाध संभव है। प्रकृत में परमाणुसाधक प्रबल अनुमान से 1. न्यायसार, पृ. ११. 2. (अ) तर्कभाषा, पृ. ३९३. (ब) तर्कामृत, पृ० ३०. (स) तर्कसंग्रह, पृ. ६६. (द) न्यायसिद्धान्तमुक्तावली, पृ. २७२. 3. न्यायभूषण पृ. ३१६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002638
Book TitleBhasarvagnya ke Nyayasara ka Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshilal Suthar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, & Philosophy
File Size14 MB
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