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[75] शूरू होता है । अन्ततोगत्वा, उसमें से विभिन्न प्रकार के सुबन्त पद एवं तिङन्त पद रूप वाक्यनिष्पन्न होता है । तन्त्र से निष्पन्न हुआ ऐसा 'वाक्य' जब वक्ता - श्रोता के बीच में एक विशिष्ट माहोल में प्रयुक्त होता है, तो वहाँ जो वाक्यार्थ प्राप्त होगा वह केवल कोशगत एवं व्याकरणिक अर्थ तक सीमित नहीं रहेगा । वहाँ पर कदाचित् एक नया सम्भाषण - सन्दर्भ भी उस अर्थ में जुड़ जाता है । उदाहरण के लिए यस्य च भावेन भावलक्षणम् । २-३-३७ सूत्र से भावलक्षणा (सति) सप्तमी का विधान किया गया है। जब कोई ज्ञात क्रिया से अज्ञात क्रिया का काल बोधित करने की विवक्षा होती है तो वहाँ ऐसी सप्तमी विभक्ति का प्रयोग किया जाता है । यथा गोषु दुह्यमानासु, देवदत्तः ग्रामं गतः । यहाँ पहले प्रश्न होता है कि देवदत्तः कदा गतः ? तो देवदत्त के (अज्ञात) गमन काल को बोधित करनेवाली जो गोदोहन रूप ज्ञातक्रिया होती है, तद्वाचक (कृदन्त) शब्दको, और उस क्रिया के कर्ता/कर्म को सप्तमी विभक्ति लगाई जाती है । यहाँ पर 'भावेन भावलक्षणम्' शब्दों से केवल व्याकरणिक - अर्थ का निर्देश हुआ है I परन्तु प्रकरणवशात् या विशिष्ट वक्ता - श्रोता के सन्दर्भ में कदाचित् दोनों क्रियाओं के बीच एक कार्यकारण भाव का सम्बन्ध भी उद्भासित करने के लिए ही भावलक्षणा सप्तमी का प्रयोग किया जाता है । यथा • मातुल घर से पधारे भरत को जब सुमन्त्र कहता है कि रामे वनं गते, दशरथः प्राणान् तत्याज । " ( जब राम वन में चले, तो दशरथने अपने प्राणों को त्याग दिया ) " ऐसे वाक्य में दो क्रियाओं के बीचमें कार्यकारणभाव सम्बन्ध व्यक्त करने के लिए ही भावलक्षणा सप्तमी का यहाँ प्रयोग किया गया है । "राम के वन में जाने के कारण, दशरथ के प्राण निकल गयें।"
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वाग् - व्यवहार में जो वक्ता - श्रोता का माहोल होता है उसको 'सम्भाषण - सन्दर्भ' कहते है । ऐसे सम्भाषण - सन्दर्भों में वक्ता की विशेषण विवक्षा का, विशिष्ट प्रकार की भाषाभिव्यक्ति का चयन, एवं श्रोता के मन पर उसका क्या प्रभाव पड़ता है इन बातों का अध्ययन किया जाता है । साथ में, वक्ता का सामाजिक परिवेश एवं उसकी मानसिक भूमिका भी देखी जाती है । निश्चित सम्भाषण सन्दर्भ में जो विशिष्ट प्रकार की भाषाभिव्यक्ति का आश्रयण किया जाता है, उससे कोशगत अर्थ एवं लिङ्गवचनादि रूप व्याकरणिक अर्थ से जो कुछ नया अधिक अर्थ प्राप्त होता है वह भी अध्ययन का विषम बनता है ॥
1.1 सम्भाषण - सन्दर्भ एवं व्याकरण का कार्यक्षेत्र :
(कोशगत एवं व्याकरणिक) 'अर्थ' से आरम्भ करके, वाक्यनिष्पत्ति पर्यन्त की तान्त्रिक प्रक्रिया प्रस्तुत करनेवाले वैयाकरण से क्या हम यह उम्मिद कर सकते है कि वह अपने
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