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धातु को क्विप् प्रत्यय 'भूतकाल' अर्थ में लगाया जाता है। जिसके परिणाम स्वरूप "ब्रह्महा - भ्रूणहा - वृत्रहा" जैसे शब्द सिद्ध होते है । इन्द्रने 'वृत्र' को मारा था । वह 'वृत्र' निरुक्त-परम्परा के अनुसार 'मेघ' है, परन्तु ऐतिहासिकों की दृष्टि से वह त्वष्टय का पुत्र असुर था । पाणिनि ने ३-२-८७ सूत्र को, भूते । ३-२-८४ के अधिकार के नीचे रखा कर 'वृत्र' का ऐतिहासिक होना स्वीकारा है ।
एवमेव 'भ्रूणहा' शब्द से भी सूचित होता है कि दिति के उदर में स्थित गर्भ का विनाश करने वाला इन्द्र ही यहाँ उद्दिष्ट हो सकता है; और उसी गर्भ के उनपचास टुकड़ों में से उत्पन्न हुए मरुद्गण बाद में इन्द्र के सहायक बन जाते हैं । इस तरह पाणिनि ने कुत्रचित् शब्दों के पुराकथाशास्त्रीय एवं दार्शनिक अर्थ भी ध्यान में लिये हैं । 3.0 'अर्थ' का कार्य : ___पाणिनि ने वाक्यनिष्पत्ति को अन्तिम लक्ष्य बनाकर, वाक्यान्तर्गत सुबन्त एवं तिङन्तादि पदों की सिद्धि बताई है । इस प्रकार की पदसिद्धि के आरम्भ बिन्दु पर ही, (१) (व्याकरणिक प्रकार के) 'अर्थ' को [in-put के रूप में] प्रदर्शित किया गया है । (२) निश्चित (रूढ या कोशगत) अर्थ की वाचिका 'प्रकृति' एवं निश्चित लिङ्ग-वचनादि रूप व्याकरणिक अर्थ को प्रकट करनेवाले 'प्रत्यय' को पहले स्थापित किया जाता है । उसके बाद प्रकृति + प्रत्यय के संयोजन की प्रक्रिया प्रारम्भ होती है । (३) तृतीय सोपान पर, पाणिनि ने स्थान्यादेशभाव की युक्ति से मुख्य रूपघटक (रूपिम) को आवश्यकतानुसार परिवर्तित करके, उसके स्थान पर अन्य उपरूपघटक (उपरूपित) को लाया जाता है । (उदाहरण स्वरूप - टाङसिङसाम् इनात्स्याः । ७-१-१२, आङो नाऽस्त्रियाम् । ७-३-१२० (४) चतुर्थ सोपान पर, आवश्यकतानुसार निश्चित आगमी को 'आगम' लगाया जाता है । अथवा निर्दिष्ट कार्यिन् को कोई कार्य कहा जाता है । (५) पञ्चम सोपान पर, ध्वनिशास्त्रानुसार दो ध्वनि के सान्निध्य को मध्ये नजर रखते हुए ध्वनिविकार की सूचना दी जाती है । (६) अन्ततोगत्वा रूपसाधनिका पूर्ण होती है । इस प्रकार संयोजनात्मक प्रक्रिया का पुरस्कार करते हुए 'अष्टाध्यायी' व्याकरण में जो शब्दनिष्पादक तन्त्र (Word-producing machine) आकारित किया गया है, उसमें 'अर्थ' को आरम्भबिन्दु पर ही रखा गया है - यह एक निर्विवाद बात है; परन्तु उसके साथ साथ यह भी कहना आवश्यक है कि उपर्युक्त रूपसिद्धि की प्रक्रिया के दौरान वही 'अर्थ' के द्वारा कौन कौन से कार्य भी सम्पन्न किये जाते हैं ।
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