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________________ [55] His treatment of a large number of word formations that are linked with the dhavani indicates that the emotive and attitudinal meanings can be formalized at least to a certain extent.22 : २.३.२ (१) संस्कृत भाषा में 'भार्या' के लिए अनेक पर्यायवाची शब्द प्रचलित है । जैसे कि कान्ता, रमा, जाया, पत्नी, कलत्रम्, दाराः, गृहिणी, कुटुम्बिनी, श्रीमती इत्यादि । किन्तु व्यवहार काल में किस सन्दर्भ में कौन सा शब्द चूना जाय ? यह प्रश्न रहता है । सांस्कृतिक परिवेश में क्या आप वैवाहिक सम्बन्ध बताना चाहते है, या धर्माचरणविधि का सन्दर्भ बताना चाहते है ? ऐसे अर्थों का प्रदर्शन करते हुए पाणिनिने लिखा है पत्युर्नो यज्ञसंयोगे । ४-१-३३ " यज्ञ के साथ सम्बन्ध रखनेवाली भार्या" रूप अर्थ प्रकट करने के लिए 'पति' शब्द के अन्तिम इ कार के स्थान में 'न्' कारादेश होता है, (= पल्) बाद में ऋनेभ्यो ङीप् । ४- १-५ सूत्र से ङीप् प्रत्यय लगकर 'पत्नी' शब्द सिद्ध होता है । इससे स्पष्ट होता है कि 'सहधर्मचारिणी' रूप अर्थ का प्रकटीकरण 'पत्नी' शब्द से ही होता है । यहाँ (४ - १ - ३३) पर पाणिनिने 'यज्ञसंयोगे' ऐसे सप्तम्यन्त पद से एक सांस्कृतिक अर्थ को उजागर किया है । ―― इस तरह से पाणिनि ने नित्यं हस्ते पाणावुपयमने । १-४-७७ सूत्र से कहा है कि 'उपयमन' (= दारकर्म) अर्थ में 'हस्ते' एवं 'पाणौ' ऐसे दो शब्द, कृञ् धातु (साधित रूप) पर में रहते, गतिसंज्ञक होते है । यथा पाणौकृत्य । हस्तेकृत्य । रामः सीतां हस्तेकृत्य मिथिलातः अयोध्यां गच्छति । जिसका अर्थ 'राम सीता के साथ विवाह सम्बन्ध से जुड़कर, सीता को अपनी पत्नी बना कर मिथिला से अयोध्या जाते है । लेकिन जब 'उपयमन' रूप अर्थ व्यक्त करना अभीष्ट नहीं है, यथा 'देवदत्तः कार्षापणं हस्ते कृत्वा गतः ।' तब 'हस्ते' शब्द की गतिसंज्ञा नहीं होती है, और परिणाम स्वरूप 'कृत्वा' के स्थान पर, 'कृत्य' ऐसा ल्यबन्त रूप नहीं होता है | यहाँ पर 'उपयमने' ऐसे सप्तम्यन्त पद 'दारकर्म' रूप अर्थ का निर्देश किया गया है । - 22. द्रष्टव्यः PANINIYAN STUDIES (Prof. S. D. Joshi Felicitation Volume); Ed. by M. M. Deshpande and Saroja Bhate, Pub. Center for South & Southest Asian Studies, University of Michigan, USA, (No. 37), 1991 (pp. 55-64). Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002635
Book TitlePaniniya Vyakarana Tantra Artha aur Sambhashana Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantkumar Bhatt
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2003
Total Pages98
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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