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________________ [51] (२) वाचि यमो व्रते । ३-२-४० सूत्र से कहा है कि - 'वाच्' शब्द उपपद में रहे तब । यम् धातु से खच् प्रत्यय होता है, यदि 'व्रत' रूप अर्थ गम्यमान हो । शास्त्रविधान के अनुसार कोई ब्राह्मण वाणी का संहरण करके मौन बैठा हो, तो उसको "वाचंयम आस्ते ।" ऐसा कहते हैं ।18 परन्तु कोई अन्य व्यक्ति अशक्ति या रुग्णावस्था के कारण बोल ही नहीं पाता हो, तो वहाँ पर कर्मण्यण । ३-२-१ सूत्र से / यम् धातु को अण् प्रत्यय लगकर वाचं यच्छति इति 'वाग्यामः' शब्द बनता है । यहाँ 'व्रत' रूप अर्थ में /-खच्/ प्रत्यय प्रवृत्त होता है और तद्भिन्न अर्थ में /-अण्/ प्रत्यय प्रवृत्त होता है । (३) गोश्च पुरीधे । ४-३-१४५ सूत्र से, 'गो' शब्द में 'पुरीष' अभिधेय होने पर /-मयट्/ प्रत्यय का विधान किया गया है । जैसे - गो: पुरीषम् इति 'गोमयम्' (गोबर) । यहाँ पर 'गाय का विकार' या 'गाय का अवयव' ऐसा अर्थ अभीष्ट होता है तब मयट् प्रत्यय नहीं लगता है । परन्तु वहाँ पर गोपयसोर्यत् । ४-३-१६० सूत्र से /-यत्/ प्रत्यय लग कर गव्यम् (पयः) शब्द बनता है । (४) अपादाने परीप्सायाम् । ३-४-५२ सूत्र कहता है कि – परीप्सा याने त्वरा गम्यमान रहने पर, अपदानकारक वाचक शब्द उपपद में रहते, धातु से णमुल् प्रत्यय होता है । जैसे(शय्याया उत्थायम् इति) शय्योत्थायं धावति । 'शय्या से उठकर सीधा भागता है।' जब त्वरा नहीं होती है तो आदमी शय्या से बाहर निकल कर शरीर शुद्धि का कार्य आदि करता है, नये वस्त्र पहनता है और बाद में कहीं बाहर जाता है । तब ऐसी स्थिति में उत् + / स्था धातु से /-ल्यप्/ प्रत्यय होकर 'उत्थाय' रूप बनता है । लेकिन त्वरा गम्यमान होती हो तो उत् + स्था से णमुल् → अम् प्रत्यय लग कर 'उत्थायम्' रूप बनता है । इस तरह से पाणिनि ने अपने शब्दनिष्पादक तन्त्र में, विशिष्ट अर्थ में विशिष्ट प्रत्यय का विधान करके अर्थभेद के कारण रूपभेद को जन्माया है । (यहाँ पर भी अर्थनिर्देश करनेवाले अंश सप्तम्यन्त पद में रखे गये हैं ।) 2.3 'वर्णनात्मक प्रकार के व्याकरण' में अर्थ का स्वरूप : . ___ पाणिनि का 'अष्टाध्यायी' व्याकरण एक शब्द निष्पादक तन्त्र के रूप में लिखा गया है और उसमें "वर्णनात्मक प्रकार" का व्याकरण लिखने का/प्रस्तुत करने का भी ख्याल रखा 18. यहाँ पर वाचंयम पुरंदरौ च । ६-३-६९ सूत्र से मुम् भाव का निपातन होता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002635
Book TitlePaniniya Vyakarana Tantra Artha aur Sambhashana Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantkumar Bhatt
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2003
Total Pages98
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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