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________________ [49] होगा । अतः 'समीप का भूत' या 'समीप का भविष्य' रूप वाक्यार्थ का विधान करने के लिए ३-३-१३१ जैसे सूत्रों की रचना करनी आवश्यक नहीं है ।। परन्तु जो लोग ऐसा मानते हैं कि पाणिनि ने (सिद्धान्तरूप से) वाक्यसंस्कार पक्ष ही प्रस्तुत किया है, उनके मत से तो 'वर्तमानसामीप्ये वर्तमानवद्वा ।'३-३-१३१ इत्यादि सूत्रों के द्वारा, वाक्यनिष्पत्ति की प्रक्रिया के आरम्भ में ही 'समीप का भूत' एवं 'समीप का भविष्यद्' रूप वाक्यार्थ का (in-put के रूप में) विधान किया गया है । और इस दृष्टि से, ३३-१३१ इत्यादि सूत्र अनावश्यक नहीं, बल्कि आवश्यक ही है ॥ (३) वाक्यगत अर्थ का विधान करनेवाले अन्य सूत्र भी बताए जा सकते हैं :- लिङ्निमित्ते लुङ् क्रियातिपत्तौ ।३-३-१३९, क्रियासमभिहारे लोट् । ३-४-२, कामप्रवेदने कच्चिदिति । ३-३-१५३ एवं आभीक्ष्ण्ये णमुल च । ३-४-२२ इत्यादि । ___पायं पायं व्रजति । (अथवा पीत्वा पीत्वा व्रजति ।) जैसे उदाहरण में पूर्वकालिक क्रिया रूप अर्थ का विधान करने के लिए / क्त्वा/ प्रत्यय बताया गया है । परन्तु उसी वाक्य में यदि 'आभीक्ष्ण्य' रूप विशेषार्थ जोड़ना चाहते हों तो /-णमुल्/ प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है । अतः आभीक्ष्ण्ये णमुल् च । ३-४-२२ सूत्र में आया हुआ सप्तम्यन्त पद वाक्यगत अर्थ का विधान करने के लिए प्रयुक्त हुआ है । 2.2.1 (2) पदगत अर्थ : पाणिनि ने वाक्य में दो तरह के पदों (सुबन्त एवं तिङन्त) का स्वीकार किया है । सुबन्त पद में से लिङ्ग, वचन (संख्या) और कारकादि रूप अर्थ प्राप्त होते हैं, और तिङन्त पद में से व्यापार, काल, पुरुष और वचनादि रूप अर्थ प्राप्त होते हैं । ऐसे लिङ्ग, वचन, काल आदि रूप अर्थ को हम 'व्याकरणिक अर्थ' (Grammatical-meaning) कह सकते हैं । पाणिनि ने इस प्रकार के 'अर्थ' को भी, पदसिद्धि की आरम्भिक अवस्था में ही in-put के रूप में, प्रस्तुत किया है। उदाहरण-स्वरूप कतिपय सूत्र देखें तो द्व्येकयोद्विवचनैकवचने । १-४-२२, बहुषु बहुवचनम् । १-४-२१, कर्मणि द्वितीया । २-३-२, अपादाने पञ्चमी । २-३-२८, वर्तमाने लट् । ३-२-१२३, परोक्षे लिट् । ३-२-११५ इत्यादि । कभी कभी उपर्युक्त व्याकरणिक अर्थों से भिन्न/विशेष अर्थ भी रूपसाधनिका के आरम्भबिन्दु पर in put के रूप में रखे जाते हैं। जैसा कि - अपवर्गे तृतीया । २-३-६, हेतौ । २-३-२३, कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002635
Book TitlePaniniya Vyakarana Tantra Artha aur Sambhashana Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantkumar Bhatt
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2003
Total Pages98
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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