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तब
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( प्रथम पुरुष ) तिप्
( मध्यम पुरुष ) सिप् (उत्तम पुरुष ) मिप्
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ल् कार स्थानि के स्थान पर
तस् झि
थस्
थ
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नव परस्मैपदसंज्ञक
वस् मस्
प्रत्यय आदेश के रूप में आ कर उपस्थित होते हैं ।
यहाँ पर, प्रथम (१) क, ख, ग सूत्रों यह देख लेना पडता है कि ल् स्थानिक तिङ् प्रत्यय से जो 'कर्तृकारक' रूप तृतीय अर्थ व्यक्त करने की विवक्षा हमने पूर्व में निर्धारित की थी वही कर्तृकारक का वाचक शब्द 'युष्मद्' उपपद में प्रयुज्यमान रहे या अप्रयुज्यमान रहे (अर्थात् गम्यमान रहे) तब, तिबादि नव परस्मैपदसंज्ञक प्रत्ययों में से मध्यम पुरुषसंज्ञक “सिप् – थस् थ" प्रत्ययों का चयन करना है । यदि विवक्षित कर्तृकारक वाचक शब्द 'अस्मद्' उपपद में है, तो उत्तमपुरुष संज्ञक "मिप् मस्' प्रत्ययों का ग्रहण करना है, परन्तु हम देखते हैं कि हमारा जो विवक्षित वाक्य है वह तो "राम (कर्तृकारक) लकड़ी से चावल पकाता है" ऐसा है; उसमें आया हुआ कर्तृकारक वाचक शब्द न तो 'युष्मद्' वाच्य है और न ही 'अस्मद्' वाच्य है । 'राम' तो अस्मद् - युष्मद् भिन्न (= प्रथम पुरुष ) होने से ल् स्थानिक परस्मैपद संज्ञक उपर्युक्त नव प्रत्ययों में से प्रथम पुरुष संज्ञक "तिप् झि" प्रत्ययों का ही अन्त में चयन करना होगा ।
वस्
तस्
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(१) (क) युष्मद्युपपदे समानाधिकरणे स्थानिन्यपि मध्यमः । १-४-१०५
(ख) अस्मद्युत्तमः । १-४ -१०७, एवं
(ग) शेषे प्रथमः । १-४-१०८
(२) द्व्येकयोद्विवचनैकवचने । १-४-२२ सूत्र उपस्थित होते हैं ।
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तत्पश्चात् द्वितीय (२) द्व्येकयो विवचनैकवचने । १-४-२२ सूत्र से कहा जाता है कि कर्तृकारक वाचक (राम) शब्द यदि द्वित्वसंख्या विशिष्ट है, तो द्विवचन - संज्ञक / —तस्/ प्रत्यय का चयन किया जाय । और वह शब्द यदि एकत्वसंख्या विशिष्ट है (अर्थात् 'राम' कर्ता की संख्या एक ही है) तो तिप् तस् झि ऐसे तीन प्रत्ययों में से 'एकवचन' संज्ञक / - तिप् / प्रत्यय चुना जाय ॥ इस सूत्र का तात्पर्य यह है कि निश्चित संख्या रूपी
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१–४–१०५, १०७ एवं १०८ सूत्रों में आयी हुई सप्तमी भावलक्षणा सति सप्तमी है । ( वह औपश् लेषिक, निमित्तसप्तमी या वैषयिक सप्तमी नहीं है ।)
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