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[40] तण्डुलान् पचति ।' वाक्य के 'पचति' क्रियापद को लिया जाय तो इसमें से (१) विक्लित्यनुकूल व्यापार, (२) वर्तमान काल, (३) प्रथम पुरुष रूप कर्तृकारक एवं (४) कर्तृकारक की एकत्व विशिष्ट संख्या का बोध होता है । लेकिन अब हमें यह देखना है कि एक तिङन्त पद से बोधित होने वाले उपर्युक्त चारों अर्थों का स्थान पाणिनीय व्याकरणतन्त्र में कहाँ पर रखा गया है ? मान लीजिए कोई वक्ता अपने विवक्षित अर्थ रूप "राम लकड़ी से चावल पकाता है।" जैसा कोई वाक्य संस्कृत में रूपान्तरित करना चाहता है। तो उसे "पकाता है इस क्रियापद में से दो अर्थ की प्रतीति होती है:
पकाता है
(ख) वर्तमानकाल
दो अर्थ
(क) पाक होना
क्रिया रूप-साधनिका के प्रथम सोपान पर, इन दो अर्थों की प्रतीति को संस्कृत में रूपान्तरित करने के लिए (पाणिनीय तन्त्र का सहारा लिया जाय तो) पाणिनि का धातुपाठ कहता है कि "डुपचष् पाके" (भ्वादि-गण ७१८ वाँ धातु) धातुरूप प्रकृति का चयन किया जाय; और अष्टाध्यायी-सूत्रपाठ से वर्तमाने लट् । ३-२-१२३ सूत्रविहित लट् प्रत्यय लिया जाय । ये दोनों - ‘पच्' रूपा प्रकृति, एवं 'लट्' रूप प्रत्यय-पूर्वोक्त दो अर्थों का रूपान्तरण करना शुरू करते है।
पकाता है
(क) पाक होने की
क्रिया
(ख) वर्तमानकाल
डुपचष् पाके
वर्तमाने लट् । (धातुपाठ-भ्वादि ७१८)
(पा. सू. ३-२-१२३) प्रकृति
प्रत्यय __ (पाणिनि ने धातुपाठ में सभी धातुओं का अर्थप्रदर्शनपूर्वक परिगणन किया है, और वह सभी अर्थों का निर्देश सप्तमी विभक्ति में किया है । इसका मतलब यह होता है कि
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