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[36] यह देखा जा सकता है कि उस भाषा की पूर्वस्थिति कैसी थी एवं परवर्ती कालमें कैसी स्थिति बनती गयी । भाषा के अध्ययन में ऐतिहासिक दृष्टि बाद में ही प्रविष्ट होती है ।
इस तरह से सोस्युरने भाषाओं के अध्ययन के लिए जो द्विविध पद्धतियाँ बताई हैं, उनमें से पाणिनिने 'सिन्क्रोनिक' प्रकार के अभिगम को स्वीकार के उनके समय में शिष्टभाषक समुदाय में संस्कृत भाषा किस स्वरूप में बोली जाती थी, किस अर्थ में कैसी रूपरचना होती थी, दो वैकल्पिक रूपों में से कौन सा रूप अधिक प्रयोगार्ह था अथवा सम्भाषण के विशिष्ट सन्दर्भ में कौन सी विशिष्ट विभक्ति या स्वरभार का प्रयोग करना चाहिए-इन सब का 'अष्टाध्यायी' में सूक्ष्मेक्षिका से निरूपण किया है । ___ यहाँ पर एक स्पष्टता करनी आवश्यक है कि यद्यपि पाणिनिने अपनी 'अष्टाध्यायी' में वैदिक संस्कृत भाषा और लौकिक संस्कृत भाषा का युगपत् वर्णन किया है; परन्तु वहाँ पर वैदिक संस्कृत भाषा में से लौकिक संस्कृत भाषा कैसे अवतरित हुई है ? – ऐसे 'डायक्रोनिक' अभिगम से संस्कृत भाषा का निरूपण नहीं किया है । किन्तु पाणिनिने 'सिन्क्रोनिक' अभिगम से ही दोनों प्रकार की संस्कृत भाषाओं का एक साथ में निरूपण करने का कार्य बड़ी सफलता से सम्पन्न किया है । संस्कृत भाषा की किसी एक रूपरचना में, लोक में कौन सा रूप प्रचलित है और वेद में क्या भिन्नता या वैशिष्ट्य है वह भी साथ साथ में बताया है । उदाहरण के रूप में कहे तो - लोक में रामः - रामौ - रामा: ऐसे प्रथमा विभक्ति के तीन रूप होते हैं । परन्तु वेद में रामा: के साथ 'रामासः' ऐसा एक अधिक रूप भी बनता है ऐसा उन्होंने 'आज्जसेरसुक्' । पा. सू. ७-१-५० सूत्र से कहा है । इस तरह सोस्युर की परिभाषा में कहें तो पाणिनीय व्याकरण 'सिन्क्रोनिक' अभिगम से लिखा गया व्याकरण है।
3.
He (Saussure) sharply distinguished historical (diachronic) and non-historical (Synchronic) approaches to language study. The former sees language as a continually changing medium; the latter sees it as a living whole existing as a 'state' at a particular moment in time. In his diagram, AB represents a synchronic axis of simultaneities' - a language state at some point in time : CD is a diachronic axis of successions' - the historical path the language has travelled. - See : The Cambridge Encyclopedia of Language : Ed. Devid Crystal, Cambridge Univ. Press, Reprint, 1992, (p. 407).
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