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भाषाविज्ञान की परिभाषा में ऐसे पद निष्पादक शास्त्र को Morphological Grammar कहा जाता है । परन्तु पाणिनि के 'कारकपाद' (1-4-23 से 55 ) एवं 'विभक्तिपाद' (2-3-1 से 73) का अध्ययन करने के बाद प्रोफे. एस. डी. जोशी (पूणें) समेत अनेक विद्वानों ने माना है कि पाणिनि ने वाक्यनिष्पादकतन्त्र की ही रचना की है । अर्थात् पाणिनीय व्याकरण Sentence level का व्याकरण है ।
जे. एफ. स्टाल 14 एवं पी. एस. सुब्रह्मण्यम् 15 जैसे विद्वानों ने कहा है कि पाणिनि ने Transformational generative grammar प्रस्तुत किया है | परन्तु प्रोफे. ज्योर्ज कार्दोना ने कहा है कि इन सभी आधुनिक भाषावैज्ञानिकों के मत केवल "अन्धैः हस्तिदर्शनम् " न्याय जैसा कहा जा सकता है । यथा एक अन्धेने हस्ती की सूंढ का स्पर्श करके बताया कि हस्ती अजगर जैसा है; तो दूसरे अन्धे ने हस्ती के पाँव का स्पर्श करके निश्चित किया कि हस्ती खम्भे या वृक्ष जैसा होता है । तो इस विभिन्न दर्शन में; हस्ती के स्वरूप का आकलन करने में, सत्यांश होते हुए भी, केवल खण्डदर्शन है; अखण्डदर्शन नहीं है ! उपर्युक्त सभी मत में कुछ न कुछ आधार जरूर है, परन्तु वह पूर्णतया स्वीकृत भी नहीं किये जा सकते | 16
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14. Word order in Sanskrit and universal grammar by Stall Johan Frederik, Foundation of Language-5, Dordrecht, 1967.
15. See : Deep structure and surface structure in Panini; by P. S. Subrahmanyam, Indian Linguistics (Vol. 36.1) Dec. 1976, (p. 346-366). 16. My point is this. As one blind man, touching the trunk of an elephant, might say he is touching a snake, whereas another, touching the elephant's legs might say he is among trees, yet the elephant remains what he is, so have the modern authors whose views I have noted looked only at parts of Panini's system in isolation, concluding there from that Pāņini was this or that. None of these views is without some foundation, yet none of them is fully acceptable either. The fault lies in taking some small part of the system, comparing it with a modern system; and concluding that the two are indeed the same. PANINI-A Survey of Research; by George Cardona, Pub., Motilal Banarasidass, Delhi, 1980, (p. 236).
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