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[16] के ऊपर कुछ अन्य प्रक्रिया करके, कैसे नये शब्द बनाये जाते हैं ? वह भी निरूपित किया गया है।
पाणिनीय व्याकरण में सुबन्त एवं तिङन्त पदों को उद्देश्य करके जो विधियाँ बताई गई हैं, उन्हें "वृत्ति" कहते हैं । 'वृत्ति' का व्याख्यान करते हुए महाभाष्य में लिखा गया है कि - परार्थाभिधानं वृत्तिः ।। पर के, अर्थात् विग्रह वाक्य के, अर्थ का अभिधान करनेवाले शब्द को "वृत्ति" कहते हैं । उदाहरण के लिए - 'कुम्भं करोति ।' इस वाक्य का जो अर्थ है वही अर्थ व्यक्त करनेवाला जो "कुम्भकार" (ऐसा कृदन्त) शब्द है, उसी को 'वृत्ति' कहते हैं ॥ 'वृत्ति' शब्द का एक अपर पर्याय 'वर्तनम्' (= प्रवर्तनम्) भी है । इसका अर्थ यह है कि - विग्रहवाक्यस्यार्थे वर्तनम् = प्रवर्तनम् (यत्र भवति), सा वृत्तिः ॥ 'कुम्भ करोति' जैसे विग्रह वाक्य के अर्थ में ही जिस ('कुम्भकार') शब्द का प्रवर्तन होता है, उसी को "वृत्ति" कहते हैं । इसी बात को भट्टोजि दीक्षित ने दूसरे ढंग से कही है :- वृत्त्यर्थावबोधकं वाक्यं विग्रहः ।' अर्थात् 'वृत्ति (जन्यपद के) अर्थ का अवबोध कराने वाला जो वाक्य, वह “विग्रह" कहलाता है' । पाणिनीय व्याकरण में इस तरह की पाँच वृत्तियाँ मानी गई हैं । यथा -
(१) कृद् रूपा वृत्ति, (कुम्भकार) (२) तद्धित रूपा वृत्ति, (कौन्तेय) (३) समास रूपा वृत्ति, (राजपुरुष) (४) एकशेष रूपा वृत्ति, (पितरौ) और
(५) सनाद्यन्ता धातुरूपा वृत्ति । (पिपठिषति) 6. (भाष्यम्) अथ ये वृत्ति वर्तयन्ति, किं त आहुः । (अत्र प्रदीपः) अथेति । कार्यशब्दिका
वाक्यादेव विकल्पेन वृत्तिं निष्पाद्यां मन्यमानाः किं वृत्तेर्लक्षणं कुर्वन्तीति प्रश्नः । (भाष्यम्) परार्थाभिधानं वृत्तिरित्याहुः । (प्रदीप:) परस्य शब्दस्य योऽर्थस्तस्याभिधानं शब्दान्तरेण यत्र सा वृत्तिरित्यर्थः ॥ द्रष्टव्यम्-२-१-१ इत्यत्र व्याकरण-महाभाष्यम्, (प्रथमो भागः), प्रका.
मोतीलाल बनारसी दास, दिल्ली, १९६७, पृ. ३२८. 7. द्रष्टव्यः वैयाकरणसिद्धान्तकौमुदी, (इत्यत्र सर्वसमासशेषप्रकरणम्-२० ॥) (द्वितीयो भागः) __ सं. पं. बालकृष्ण पञ्चोली, चौखम्बा संस्कृत सीरिझ ऑफिस, वाराणसी, १९६९, (पृ. १०१). 8. तत्रैव, कृत्तद्धितसमासैकशेषसनाद्यन्तधातुरूपाः पञ्चवृत्तयः ॥ पृ. १०१.
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