SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२) सर्वस्मै : ___ रूपप्रक्रिया सर्व + विधिसूत्र | (१) सर्वादीनि सर्वनामानि ।१-१-२७ सूत्र से 'सर्व' शब्द की सर्वनाम संज्ञा होती है । तत्पश्चात् - . सर्व + चतुर्थी (२) (किसी अध्याहृत क्रिया के प्रति 'सर्व' शब्द का सम्प्रदानकारकत्व होने से) चतुर्थी सम्प्रदाने । २-३-१२ सूत्र से चतुर्थी विभक्ति का विधान किया . सर्व + डे जाता है । प्रकृति में सम्प्रदान- | तदर्थवाचक चतुर्थी-| (३) स्वौजमौ० ॥४-१-२ सूत्र से /-डे। कारकत्व, एवं एकत्व, | विभक्ति एकवचन । प्रत्यय का चयन किया जाता है। पुंस्त्व होने से का प्रत्यय - सर्व + । डे स्थानिन् (४) सर्वनाम्नः स्मै । ७-१-१४ सूत्र से ह्रस्व अ कारान्त 'सर्वनाम' संज्ञक शब्द के बाद आये हुए /-डे। प्रत्यय = स्थानि सर्व + स्मै के स्थान में /-स्मै/ आदेश होता है । आदेश . सर्वस्मै ॥ यहाँ हम यह देख सकते हैं कि /-। प्रत्यय से /-स्मै/ जैसा परिवर्तन लाने के लिए ध्वनिशास्त्र को मान्य हो ऐसा कोई नियम ही नहीं है । ऐसे स्थल पर पाणिनि ने स्थान्यादेशभाव की प्रयुक्ति से काम लिया है । हमें केवल आचार्यवचन से ही /। के स्थान में /-स्मै/ को बिठाना है ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002635
Book TitlePaniniya Vyakarana Tantra Artha aur Sambhashana Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantkumar Bhatt
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2003
Total Pages98
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy