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थाणु--ऐसा करना ठीक नहीं । देखो, निर्दोष अर्थोपार्जन के निम्नलिखित उपाय हैं-देशगमन, मित्रता करना, राजसेवा, मान-अपमान में कुशलता, धातुवाद, सुवर्णसिद्धि, मंत्र, देवाराधन, समुद्रयात्रा, पहाड़ की खान खोदना, बनिज-व्यापार, विविध कर्म, और अनेक प्रकार की शिल्पविद्या ।'
तत्पश्चात् अनेक पर्वत और नदियों से संकीर्ण अटवियों को लांध, दोनों प्रतिष्ठान नगर में पहुँचे । वहाँ उन्होंने विविध प्रकार का बनिज-व्यापार कर और मेहनत-मजूरी करके पाँच-पाँच हजार सुवर्णमुद्राएँ कमाई ।
यथेच्छ धन की उन्होंने कमाई कर ली । लेकिन इस धन को लेकर घर कैसे पहुँचा जाये ?
उन्होंने अपनी पाँच-पाँच हजार की मुद्राओं को दस रत्नों में बदल, उन्हें एक मैले-कुचैले वस्त्र में बाँध लिया । वेश परिवर्तन कर उन्होंने सिर मुंडा लिया, हाथ में छाता ले लिया, दण्ड के अग्रभाग में तुंबी लटका ली, गेरुए रंग के वस्त्र धारण किये और अपनी बहंगी में भिक्षापात्र रक्खा। ऐसा लगा जैसे दोनों दूर से तीर्थयात्रा करके आ रहे हैं । चोरों की नजरों से बचने के लिए दोनों भिक्षा मांगते-खाते स्वदेश के लिए रवाना हो गये । सागरदत्त की प्रतिज्ञा
एक बार की बात है, चम्पा का श्रेष्टिपुत्र सागरदत्त कौमुदी महोत्सव देखने गया था। नटों का नृत्य हो रहा था । नट का एक सुभाषित सुनकर सागरदत्त बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने भरतपुत्रों को बुलाकर अपने नाम से एक लाख के पुरस्कार की घोषणा की। यह देखकर नट का खेल देखने के लिए उपस्थित समस्त नर-नारी सागरदत्त के गुणों की प्रशंसा करने लगे ।
पंचतंत्र, प्रथम तंत्र के आरंभ में धनोपार्जन के छह उपाय बताये गये हैं --भिक्षा मांगकर, राजा की चाकरी करके, खेती करके, विद्या पढ़कर, लेनदेन करके और बनिजव्यापार करके । इनमें बनिज व्यापार सबसे श्रेष्ठ है । व्यापार सात प्रकार के हैंगंधी का व्यापार, लेन-देन का व्यापार, थोक व्यापार, परिचित ग्राहकों को माल बेचना, झूठे दाम बताकर माल बेचना, खोटी माप-तौल रखना और दिसावरों से माल मँगाना । कुवलयमाला, पृ० ५७ । प्राकृत गाथाओं में निबद्ध नेमिचन्द्र आचार्य (वृत्तिकार आम्रदेव) के आख्यानकमणिकोष (पृ. २२२ . २५) के कथानक से इस आख्यान की तुलना की जा सकती है। डॉक्टर ए. एन. उपाध्ये, कुवलयमाला, भाग २, नोट्स पृ० १३७ ।
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