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________________ ३६ हुआ माल उन्होंने ले लिया उन्होंने भी आग जलायी और वहाँ बकरों को बांध और फल रखकर अपने स्थान पर आ बैठे । अपने माल के बदले चारुदत्त के साथियों ने यह माल ले लिया । तत्पश्चात् सब लोग सीमानदी के तट की ओर चले । यहाँ से आँखों पर पट्टी बांध बकरों की सवारी की । यह मार्ग अजपथ कहलाता था । इस मार्ग से एकदम खड़ी और सीधी चढ़ाई वाले वज्रकोटिसंस्थित पर्वत पर पहुँचे । शीत हवा लगने के कारण बकरे खड़े हो गये । सबने आँखों की पट्टी खोल दीं, और बकरों पर से उतर आये । यहाँ से रत्नों का संचय करने के लिए रत्नद्वीप जाना था । इस द्वीप में पहुँचना बहुत दुष्कर था । बकरों को मारकर उनकी रुधिरमय खाल से भस्त्रा तैयार की गई । अपनी कमर में छुरी बांध व्यापारियों ने भस्त्रा के अन्दर प्रवेश किया । तत्पश्चात् रत्नद्वीप से आनेवाले और वहाँ आकर व्याघ्र, रीछ और भालू आदि जानवरों का मांस भक्षण करने वाले महाकाय भारुंड पक्षी, भस्त्रा को मांसपिंड समझ, उसे अपनी चोंचों से उठा रत्नद्वीप ले गये । चारुदत्त की भस्त्रा को दो पक्षियों ने उठाया और वे गेंद की भाँति उसे हिलाते-डुलाते और उछालते हुए आकाश में उड़ गये । दोनों में लड़ाई-झगड़ा होने लगा और इस झगड़े में चारुदत्त की भस्त्रा उनके मुँह से छूटकर एक महान् द्रह में गिर पड़ी । जल में गिरते ही अपनी कमर में बंधी हुई छुरी से भस्त्रा को चीर, चारुदत्त बाहर निकला और तैर कर तालाब के किनारे आ गया । उसने आकाश की ओर देखा तो पक्षी उसके साथियों को अपनी चोंचों में उठाये उड़े जा रहे थे । चारुदत्त सोचने लगा- -क्या अब मृत्यु ही एक शरण है ? पुरुषार्थ में मैंने कोई कमी नहीं की, फिर भी सफलता क्यों नहीं ? मरण का आलिंगन करने के लिये वह एक पर्वत पर चढ़ा । वहाँ भुजा उठाकर एक पैर से तप करते हुए साधु को देखा । चारुदत्त ने फिर साहस बटोरा । फिर से वह जी-तोड़ परिश्रम पुरुषार्थ करने लगा | एक दिन चारुदत्त को अपनी माँ का खच्चरों, गधों, ऊँटों और गाड़ियों में माल भरकर, साथ उसने चंपानगरी में प्रवेश किया । राजा स्मरण हो आया । बहुत-से अपनी पुत्री गंधर्वदत्ता के ने चारुदत्त का सरकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002634
Book TitlePrakrit Jain Katha Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages210
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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