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________________ ५ प्रसन्नचन्द्र और वल्कलचीरी की कथा ___ वसुदेवहिंडी (पृ० १६-२०) की राजा प्रसन्नचन्द्र और ऋषिकुमार वल्कलचीरी संबंधी कथा को वसुदेवहिंडी के उल्लेखपूर्वक जिनदासगणि महत्तर ने आवश्यकचूर्णी (पृ० ४५६-६०) प्रायः अक्षरशः उद्धृत किया है । आवश्यकनियुक्ति में भी इसका उल्लेख है । वसुदेवहिंडी के कर्ता संघदासगणि को यह कथा गुरुपरम्परा से प्राप्त हुई होगी । उल्लेखनीय है कि ऋषिभाषित में नारद, वल्कलचीरी, भारद्वाज, याज्ञवल्क्य आदि ऋषियों को अजिनसिद्ध (जिनबाह्य-सिद्ध) माना गया है।' वाल्मीकि रामायण के आदिकाण्ड में ऋष्यशृङ्ग की कथा से इस की तुलना की जा सकती है। ऋष्यशृङ्ग का अपने पिता के द्वारा वन में पालन-पोषण हुआ था। प्रौढ़ावस्था को प्राप्त होने तक उसने अन्य किसी मनुष्य के दर्शन नहीं किये थे। अंग के राजा लोमपाद ने ब्राह्मणों की सलाह से अनेक युवतियों की सहायता द्वारा उसे अपने पास मंगवाकर अपनी कन्या का विवाह उससे कर दिया । बौद्धों की उदान-अट्ठकथा और धम्मपद-अट्ठकथा (२, पृ० २०९ आदि) में भी यह कथा कुछ रूपान्तर के साथ उपलब्ध है । इस प्रकार का तुलनात्मक अध्ययन निश्चय ही प्राकृत जैन कथा साहित्य के विकास में उपयोगी हो सकता है। ६ ललितांग की कथा सार्थवाह पुत्र ललितांग की कथा का उल्लेख किया जा चुका है। वसुदेवहिंडी (पृ० ९-१०) में ललितांग के दृष्टांत द्वारा गर्भावास के दुखों की ओर लक्ष्य किया है । हरिभद्रसूरि ने अपनी समराइच्च-कहा में ललितांग, अशोक और कामांकुर को उज्जैनी के राजकुमार समरादित्य का मित्र बताया है जो एक साथ बैठकर कामशास्त्र की चर्चा में समय व्यतीत करते हैं । हेमचन्द्र के परिशिष्ट पर्व (३. १९. २१५-७५) में भी यह कथा आती है । जो बहुत कुछ वसुदेवहिंडी की कथा पर आधारित है। कथा का उपसंहार दोनों में एक जैसा है। आगे चलकर सोमप्रभसूरि के कुमारपालप्रतिबोध में शीलवती-कथानक के अन्तर्गत ललितांग, अशोक, रतिकेलि और कामांकुर को नंदिपुर के राजा का मित्र कहा है। राजा शीलवती के पति की अनुपस्थिति में अपने मित्रों को शीलवती के शील की परीक्षा के लिए भेजता है। १. तथा देखिए सूत्रकृतांग ३, ४, २, ३, ४, पृ० ९४ अ-९५; चतुःशरणटीका ६४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002634
Book TitlePrakrit Jain Katha Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages210
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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