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नाम सुकुमालिका और बृहत्कथाश्लोकसंग्रह में कुसुमालिका है । एक में धूमसिंह और दूसरे में अंगारक उसका अपहरण करके ले जाता है ।।
आगे चलकर पुष्कर मधुपान, गणिका के घर रहना, वहाँ से निष्कासित किये जाना, धनार्जन कर घर लौटकर आने की प्रतिज्ञा, वेत्रपथ, शंकुपथ, अजपथ पारकर देश-विदेश की यात्रा, भारुण्ड पक्षियों द्वारा रत्नद्वीप में ले जाया जाना; तथा वीणावादन की शिक्षा, गंधर्वदत्ता के साथ विवाह, और विष्णु गीतिका आदि कथा-प्रसंगों में वसुदेवहिंडी और बृहत्कथाश्लोकसंग्रह में इतनी अधिक साम्यता है कि कितने ही स्थलों पर अर्थ के स्पष्टीकरण के लिए एक दूसरे का अवलंबन लिया जा सकता है । दोनों की भाषा भिन्न होने पर भी समान भाषा की अभिव्यक्ति और समान शब्दों का प्रयोग देखने में आता है। चारुदत्त (बृहत्कथाश्लोकसंग्रह के सानुदास) के कथानक को देखकर यह निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है कि इस कथानक का स्रोत कोई गुणाढ्य की बृहत्कथा जैसी सुप्रसिद्ध रचना रही होगी।
हरिषेण के बृहत्कथाकोश (९३) में चारुदत्त का कथानक सामान्य हेरफेर के साथ वर्णित है । पुलिनतट पर पदचिह्नों की घटना का यहाँ अत्यन्त संक्षिप्त उल्लेख है । अमितगति के मित्र का नाम गोरमुंड है, गौरीपुंड नहीं । कदली वृक्ष में विद्याधर को कीलित करने का उल्लेख है, कदम्ब वृक्ष में नहीं । चारुदत्त वसंतसेना गणिका के घर से निष्कासित होकर वस्त्र से मुँह ढंककर अपने घर जाता है। व्यापार के लिए खरीदी हुई कपास वन की अग्नि से भस्म होती है, चूहे के द्वारा ले जाई गई दीये की बत्ती से नहीं । समुद्रयात्रा के समय छह बार जहाज के टूटने का उल्लेख है । इषुवेगा की जगह कांडवेगा नदी का और टंकण देश की जगह टंकण पर्वत का नाम आता है । केवल चारुदत्त और रुद्रदत्त ही बकरों पर सवार होकर यात्रा करते हैं । कथा के अंत में चारुदत्त जैनी दीक्षा ग्रहण कर लेता है । सुलसा और याज्ञवल्क्य की कथा भी इस कथानक के साथ जोड़ दी गयी है। जिससे पता लगता है कि संघदास गणि वाचक कृत वसुदेवहिंडी ग्रन्थकार के सामने था ।
प्राचीन कथानकों में समयानुसार किस गति से संशोधन-परिवर्तन होता चलता है, यह कथा-साहित्य के विकास के अध्ययन के लिए आवश्यक है । जिनसेन के हरिवंश पुराण (७८३ ई० में समाप्त) में भी चारुदत्त की कथा आती है।
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