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________________ तथा शासनव्यवस्था के अन्तर्गत अपराध और दण्ड, सैन्यव्यवस्था, राजकरव्यवस्था; आर्थिकव्यवस्था के अन्तर्गत खेती-बारी, वनिज-व्यापार, उद्योग-धन्धे; सामाजिकव्यवस्था के अन्तर्गत जाति-पाति, स्त्रियों का स्थान, अध्ययन-अध्यापन, कला और विज्ञान, रीति-रिवाज, तथा धार्मिकव्यवस्था के अन्तर्गत श्रमण सम्प्रदाय, लौकिक देवी-देवता आदि की उपयोगी चर्चा भी प्राकृत जैन कथाग्रन्थों में की गयी है । कथाओं के प्रकार कथा के दो प्रकार बताये हैं-चरित (जिसमें महान् पुरुषों के यथार्थ चरितों का वर्णन हो) और कल्पित (जिसमें कल्पना प्रधान कथाएँ हों)। स्त्री और पुरुष के भेद से दोनों के दो भेद हैं। धर्म, अर्थ और काम सम्बधी कार्यों से सम्बद्ध दृष्ट, श्रुत और अनुभूत वस्तु का कथन चरित-कथा है । इसके विपरीत, कुशल पुरुषों द्वारा जिसका पूर्वकाल में उपदेश किया गया हो, उसकी अपनी बुद्धि से योजना कर कथन करना कल्पित-कथा है । चरित और कल्पित आख्यान अद्भुत, शृङ्गार और हास्यरसप्रधान होते हैं।' __ अन्यत्र अर्थ, धर्म और काम की अपेक्षा पुरुषों के तीन प्रकार कहे गये है। अर्थ की अपेक्षा उत्तम पुरुष अपने पिता और पितामह द्वारा अर्जित धन का उपभोग करता हुआ उसमें वृद्धि करता है, मध्यम पुरुष उसकी हानि करता है और अधम पुरुष उसे खा-पीकर ठिकाने लगा देता है। धर्म की अपेक्षा, स्वयंबुद्ध पुरुष को उत्तम और बुद्धों द्वारा बोधित पुरुष को मध्यम कहा गया है। काम की अपेक्षा दूसरे को चाहता है और दूसरा भी उसे चाहता है, उसे उत्तम, जिसे अन्य कोई चाहता है लेकिन चाहने वाले को वह नहीं चाहता उसे मध्यम, तथा जो अन्य किसी को चाहता है लेकिन अन्य उसे नहीं चाहता, उसे अधम पुरुष कहा गया है। १. वसुदेवहिंडी, पृ० २०८-९ २. वही, पृ० १०१ । तुलनीय, शुकसप्तति (५७ वीं कथा) की कथा से। यहाँ उत्तम, मध्यम और अधम के निम्न लक्षण बताये गये हैंउत्तम-रक्तां यो भामिनी देवि ! सक्तां कामयते सदा । तयापि काम्यतेऽत्यर्थमुत्तमः सोऽभिधीयते ॥२६५।। मध्यम-कामिनीभिः स्मरार्ताभिः सततं काम्यते हि यः । न ताः कामयते नम्रो मध्यमो नायकः स्मृतः ॥२६४।। अधम-हतो मन्युसहस्रर्यः संतप्तो मदनाग्निना । रक्तश्च यो विरक्तायां सोऽधमः परिकीर्तितः ॥२६३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002634
Book TitlePrakrit Jain Katha Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages210
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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