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________________ दिये । यह मार्ग समुद्रमार्ग को अपेक्षा भी भीषण था। मार्ग में मांसपिंड को अपनी चोंचों से पकड़कर ले जाने वाले इन गीधों में युद्ध होने लगा । अपनी चोंचे मार-मारकर उन्होंने मांसपिंड की खाल को चलनी बना दिया। इस झगड़े में जिस मांसपिंड में सानुदास बंद था. वह गीध की चोंच से छूटकर एक तालाब में गिर पड़ा । सानुदास ने अपने शरीर को कमलपत्रों से घर्षित किया । तट पर वेत्रपथ, वेणुपथ और अजपथ का उल्लेख बृहत्कथाश्लोकसंग्रह (१८... ४३२-५१८) में कुछ विस्तार के साथ उपलब्ध है। महानिद्देस (१. ७, ५५, पृ० १३०) में जण्णुपथ, अजपथ, मेण्डपथ, संकुपथ, छतपथ, वंसपथ, सकुणपथ, मूसिकपथ, दरिपथ और वेतपथ (वेत्ताचार) का उल्लेख है । सद्धम्मपज्जोतिकाटीका (पालि टैक्स्ट सोसायटी) में इन पथों को व्याख्या दी गयी है। वसुदेवहिंडी के चारुदत्त की यात्रा प्रियंगुपट्टन से आरंभ होती है । बृहत्कथाश्लोकसंग्रह का सानुदास सुवर्णभूमि पहुँचकर वेत्रपथ के सहारे पर्वत पर आरोहण करता है । वसुदेवहिंडी में यात्रा का मार्ग मध्य एशिया और बृहत्कथाश्लोकसंग्रह में मलयएशिया जान पड़ता है। सानदास की कहानी के कछ अंशों से-जैसे शैलोदा नदी पार करना, बकरों और भेड़ों का विनिमय आदि-जान पड़ता है कि सानुदास का मार्ग भी मध्य एशिया का ही मार्ग रहा होगा । किन्तु गुप्तकाल में सुवर्णद्वीप का महत्त्व बढ़ जाने से कहानी का घटना स्थल मध्य एशिया के स्थान पर सुवर्णभूमि कर दिया गया। देखिए, सार्थवाह, पृ० १३९ २. अन्यत्र (५०९ लोक में भारूण्ड का उल्लेख है जैसा कि वसुदेवहिंडी में है। ३. उत्तराध्ययन की नेमिन्द्रीय वृत्ति (१८, पृ० २५१ अ-२५२) में पंचशैल द्वीप से आने वाले भारुड पक्षियों का उल्लेख है । पंचशैल प्रस्थान करने वाले यात्री, समुद्र तट पर स्थित वट वृक्ष की शाखा को पकड़ कर वृक्ष पर पहुँच जाते । वहाँ तीन पैर वाले सोये हुए पक्षि युगल के बीच के पैर को पकड़, उसमें अपने आपको एक कपड़े से बांध लेते । गरुड़ पक्षी को विष्णु का वाहन कहा गया है। इसका आधा भाग मनुष्य का है और आधा पक्षी का । महाभारत (१. १६) में इसकी कथा दी है। Pseudo Callisthenes पुस्तक १.४१ में कच्चे मांस का भक्षण करने वाले बृहत्काय पक्षियों का वर्णन हैं। सिकन्दर ने उसपर सवारी कर आकाश की यात्रा की और फिर वापिस लौट आया । बुद्धघोष की कथाओं में इसे हथिलिंग कहा है; इसमें पाँच हाथियों जितनी ताकत होती है। धम्मपद अट्ठकथा के अनुसार रानी सामवती के गर्भवती होने पर राजा ने उसे पहनने के लिए लाल चोगा दिया । हथिलिंग रानी को मांसखण्ड समझकर उसे आकाश में उड़ा ले गया । कथासरित्सागर (२.१. ४६-४८) भी देखिए । मडागास्कर, न्यूजीलैंड आदि प्रदेशों में इन बृहत्काय पक्षियों की हड्डियों और अण्डों के जीवावशेष पाये गये हैं, जो इन पक्षियों के अस्तित्व को सिद्ध करते हैं । देखिए. एन. एम० पेंजर, द ओशन आफ स्टोरी, जिल्द १, पृ० १०३-५, तथा १४१ फुटनोट । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002634
Book TitlePrakrit Jain Katha Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages210
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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