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गोमुख-स्त्रियों का अधोभाग भारी होता है और बायें हस्त से प्रणय चेष्टा करने में वे दक्ष होती हैं। इससे उसका बायाँ पैर कुछ ऊपर उठ गया हैं।
हरिशिख ... यदि स्त्री उसके साथ थी तो उसके साथ रमण किये बिना वह कैसे चला गया ?
गोमुख-प्रकाश होने के कारण जल से घिरे हुए इस प्रदेश को उसने रति के योग्य नहीं समझा । और पैरों के अविकीर्ण होने से लगता है कि वह कहीं पास में ही होना चाहिए । यह प्रदेश अत्यन्त रमणीय है, इसे छोड़कर भला वह कहाँ जा सकता है। चलो, उसके पदचिह्नों से उसका पता लगायें ।
कुछ दूर चलने पर चार पैर दिखायीं देते हैं ।
गोमुख-देखो, पायल के अग्रभाग से चिह्नित ये पैर किसी स्त्री के जान पड़ते हैं । पुरुष के पैर अलग दिखायी दे रहे हैं ।
कुछ दूर चलने पर उन्हें भ्रमरों से आच्छन्न सप्तपर्ण का वृक्ष दिखायी दिया ।
गोमुख-देखो, यहाँ आकर स्त्री ने वृक्ष की शाखा पर लगा हुआ पुष्प गुच्छ देखा । उसे न पा सकने के कारण उसने अपने प्रियतम से गुच्छे को तोड़कर देने का अनुरोध किया ।
चारुदत्त-यह तुमने कैसे जाना ?
गोमुख--यह देखो, पुष्पगुच्छ की इच्छा करती हुई, एड़ी बिना, स्त्री के पैर दिखायी दे रहे हैं । और जानते हो विद्याधर लंबा था, इसलिए बिना विशेष प्रयत्न के ही उसने पुष्पगुच्छ को तोड़ लिया । तट पर उसके अभिन्न रेखावाले ये पैर दिखायी दे रहे हैं। लेकिन इस गुच्छे को उसने अपनी प्रिया को नहीं दिया। और लगता है, उन्हें यहाँ से गये हुए बहुत समय नहीं हुआ है। क्योंकि पुष्पगुच्छ के अभी हाल में तोड़े हुए होने के कारण, पुष्प की डंठल में रस टपक रहा है।
हरिशिख-ठीक है, पुष्पगुच्छ को अभी तोड़ा गया होगा। लेकिन यह कैसे जाना कि उसे विद्याधर ने अपनी प्रिया को नहीं दिया । प्रिया के मांगमे पर तो देना ही चाहिए था।
मोमुख-काम प्रणय से चंचल हो उठता है । लगता है कि उस स्त्री ने अपने प्रियतम से पहले किसी चीज की याचना नहीं की । अतएव अपनी प्रिया को याचना से चंचल देख, विद्याधर को बड़ा अच्छा लगा । वह भी 'दो ना, प्रिय दो ना' कहती हुई उसके चारों ओर फिरकी की भाँति फिरने लगी। यह
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