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________________ १२२ कोक्कास का ताम्रलिप्ति-आगमन । ताम्रलिप्ति में दुष्काल । कोक्कास ने अपनी आजीविका चलाने और राजा को अपनी शिल्पकला का ज्ञान कराने के लिए कपोत युगल सज्ज किये । ये कपोत प्रतिदिन राजा के कलमशालि लेकर आ जाते । कोक्कास के यंत्रमय कपोत युगल शालि चुग जाते हैं, इस बात का पता लगने पर शिल्पी को राजदरबार में उपस्थित किया गया । राजा ने संतुष्ट होकर उसका सम्मान किया। राजा की आज्ञा से आकाशगामी यंत्र सज्जित किया गया । आकाश की सैर करते हुए दोंनोंका कालयापन । राजा के साथ सैर करने की महारानी की इच्छा । कोक्कास ने निवेदन किया कि यंत्र तीसरे आदमी का भार वहन नहीं कर सकता । रानी का पुनः अनुरोध । राजा रानीको साथ लेकर चला । कुछ दूर उड़ने पर यंत्र के बिगड़ जाने से वह पृथ्वी पर आ गिरा। तोसलि नगर में कोक्कास यंत्र को ठीक करने के औजार लेने गया । बड़ई के घर पहुँच उसने बासी मांगी । बढ़ई ने कहा कि वह राजा के लिए रथ बना रहा है, वासी नहीं मिल सकती । कोक्कास ने कहा-लाओ, तुम्हारा रथ मैं बना दूं । बढ़ई समझ गया कि वह कोक्कास होना चाहिए । उसने काकजंघ राजा को कोक्कास के आने का समाचार दिया । काकजंघ ने राजा और रानी को कैद कर लिया । कोक्कास से राजकुमारों को शिल्पकला की शिक्षा दिलवायी। कोक्कास ने आकाशगामी दो घोटक- यंत्रों का निर्माण किया। एक बार कोक्कास सोया हुआ था, तो राजकुमार घोटकयंत्र लेकर आकाश में उड़ गये। उनके पास यंत्र को वापिस लौटाकर लाने की कील नहीं थी, अतः मरण अवश्यंभावी था। राजा ने कोक्कास के वध की आज्ञा सुनायो । एक राजकुमार ने कोक्कास को यह दुखद समाचार सुनाया । कोक्कास ने चक्रंयंत्र सज्जित किया । कुमारों को उस पर सवार हो जाने को कहा । उसने बताया कि जब वह शंख फूंके तो शंख की ध्वनि सुनकर वे बीच की कील पर प्रहार करें। ऐसा करने से यान आकाश में उड़ जायेगा । राजकुमार यान में सवार हो गये । वध के लिए ले जाते समय कोक्कास ने शंख की ध्वनि की। राजकुमारों ने बीच की कील पर प्रहार किया और वे चक्रयंत्र की शूली में बिंधकर मर गये । कोक्कास का वध कर दिया गया।' १. पृ० ६१-६३ । आवश्यक नियुक्ति, ९२४ में शिल्पसिद्धि में कोक्कास बढ़ई का दृष्टांत दिया है । आवश्यकचूर्णी पृ. ५४१ में यह कहानी कुछ हेरफेर के साथ मिलती है। कोक्कास को यहाँ शूरिक का निवासी बताया है जो उज्जयिनी में आकर रहने लगा था । यवन देश में जाकर शिल्प सीखने की बात का यहाँ उल्लेख नहीं है । राजा अपनी महारानी के साथ आकाश की सैर करता, इसलिये अन्य रानियों ने ईर्ष्यावश यंत्र की कील छिपा दी जिससे यंत्र जमीन पर गिर पड़ा। देखिये, दो हजार बरस पुरानी कहानियाँ (प्रथम संस्करण) 'कोक्कास बढ़ई' कहानी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002634
Book TitlePrakrit Jain Katha Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages210
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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