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अतएव जो रानी कहानी कहने में कुशल होती, उसी के पास वह अपनी रात्रि व्यतीत करता । कनकमंजरी ने सोचा कि इस तरह तो बहुत दिनों बाद उसकी बारी आयेगी।
एक दिन राजा कनकमंजरी के पास आया तो उसने अपनी दासी को सिखा दिया कि वह उससे कहानी सुनाने का अनुरोध करे । कनकमंजरी ने कहानी सुनाना आरंभ किया।
कहानी सुनाते-सुनाते जब काफी रात बीत जाती और कहानी चरम सीमा पर पहुँचती तो रानी नींद का बहाना बना, अगली रात को कहानी पूरी करने के लिए कहती । इस प्रकार कनकमंजरी राजा को छह महीने तक कहानियाँ सुनासुनाकर उसे अपने ही पास रक्खे रही।'
कौतूहल की लीलावई कहा में प्रासाद की अट्टालिका पर सुख से बैठी हुई कवि की पत्नी, रात्रि के समय, ज्योत्स्ना से पूरित अन्तःपुर की गृहदीर्घिका में गंधोत्कट कुमुदों के रसपान की लोलुपता से गुंजार करते हुए भ्रमरों का शब्द सुन, अपने प्रियतम से कोई सुन्दर कथा कहने का अनुरोध करती है।
___ कथा-कहानियों के साथ शुक-सारिका के नाम भी प्राचीन काल से जुड़े चले आते हैं। १. आवश्यकचूर्णी २, पृ. ५७-६० २. कौतूहल, लीलावई, २४ ३. शुकसप्तति में शुक द्वारा कथित ७० कहानियों का संग्रह है। हरिदत्त सेठ का मदन
विनोद पुत्र कुमार्गगामी था और वह पिता की सीख नहीं मानता था। अपने मित्र को दुखी देख त्रिविक्रम नामक ब्राह्मण, नीतिशास्त्र में निपुण शुक और सारिका लेकर उसके पास पहुँचा
और सपत्नीक शुक को पुत्र की भाँति पालने को कहा । शुक के उपदेश से उसका पुत्र अपने पिता का आज्ञाकारी बन गया। तत्पश्चात् वह धनार्जन के लिए देशांतर को रवाना हुआ । उसकी अनुपस्थिति में उसकी पत्नी प्रभावती परपुरुष की अभिलाषवती हुई। ज्योंही वह परपुरुष के साथ रमण करने चली, सारिका ने उसे रोक दिया । प्रभावती ने उसका गला मरोड़कर उसे मार देना चाहा, लेकिन वह न मरी । शुक सारिका से अधिक चतुर था । उसने प्रभा. बती को ७० कहानियाँ सुनाकर उसके शील की रक्षा की । कादंबरी में कहानी कहने वाला शुक है। तथा देखिये जातक (नं. १९८)।
पंचाख्यानवार्तिक (जे हर्टल, लाइजिग, १९२२) में २६ वीं कथा में काश्मीर के नवहंस राजाको कथा आती है। उसने शुक को देशविदेश में भ्रमण करने भेजा । भ्रमण करता हुआ वह स्त्रीराज्य में पहुँचा। रानी ने उसे चार समस्यायें दी और साथ में एक पत्र । मंत्रियों को एकत्र किया गया । अन्त में भारुड शावक को उसके पिता ने समस्या का अर्थ बताया कि पोतमपुर में तिलकमंजरी नाम की वणिक पुत्री राजा से प्रेम करती है।
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