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कर दिया जाता है, उसी प्रकार विषय-भोगों में रचा-पचा मनुष्य मरणसमय आने पर शोक का भागी होता है। द्रुमपत्र के दृष्टांत द्वारा मनुष्य जीवन की असारता व्यक्त करते हुए क्षणभर के लिए भी प्रमाद न करने का उपदेश है। सड़ियल बैल के दृष्टान्त द्वारा बताया है कि जो दशा सड़ियल बैलों को गाड़ी में जोतने से होती है, वही दशा धर्मपालन के समय कुशिष्यों की होती है।
प्राकृत कथाओं की दृष्टि से आगमों पर लिखा हुआ नियुक्ति, भाष्य, चूर्णी और टीका साहित्य भी बहुत महत्त्वपूर्ण है । नियुक्तियों के रचयिता भद्रबाहु, निशीथ, कल्प और व्यवहार भाष्य के प्रणेता संघदासगणि, चूर्णियों के कर्ता जिनदासगणि महत्तर तथा टीकाकार हरिभद्रसूरि, मलयगिरि, शांतिचन्द्रसूरि, देवेन्द्रगणि (नेमिचन्द्रसूरि) के नाम यहाँ उल्लेखनीय हैं। इस साहित्य में भरत, सगर, राम, कृष्ण, द्वीपायनऋषि, द्वारकादहन, गङ्गा की उत्पत्ति आदि अनेक पौराणिक आख्यानों का वर्णन है।
आगमोत्तर कथा साहित्य में धर्मकथाएँ आगमोत्तर कालीन कथाग्रन्थों में वसुदेवहिंडी के अन्तर्गत इंद्रियविषयप्रसक्ति में वानर', गर्भावास की दुःख प्राप्ति में ललितांग", स्वकृत कर्मविपाक में कोंकण ब्राह्मण", स्वच्छन्दता में रिपुदमन नरपति, परलोकप्रत्यय और धर्मफलप्रत्यय में राजकुमारी सुमित्रा', परदारदोष में विद्याधर वासव तथा पंचाणुव्रत आदि संबंधी आख्यान उल्लेखनीय हैं।
___ हरिभद्रसूरि की धर्मकथा समराइच्चकहा में निदान की मुख्यता बतायी गयी है। अग्निशर्मा पुरोहित राजा गुणसेन द्वारा अपमानित किये जाने पर निदान बांधता है कि यदि उसके तप में कोई शक्ति हो तो वह आगामी भव में गुणसेन का शत्रु बनकर उससे बदला ले। परिणामस्वरूप अग्निशर्मा एक नहीं, नौ भवों में गुणसेन से बैर का बदला लेता है। दोनों के पूर्वजन्मों की कथाएँ यहाँ वर्णित हैं। मूलकथा के अन्तर्गत अनेक अन्तर्कथाएँ और उपकथाएँ हैं जिनमें निर्वेद, वैराग्य, संसार की असारता, कर्मों की विचित्र परिणति, मन की विचित्रता, लोभ का परिणाम, १. वसुदेवहिंडी, पृ. ६
४. वही, पृ० ६१ २. वही, पृ० ९
५. वही, पृ. ११५ ३. वही, पृ. २९
६. वही, पृ० २९२ ७ वसुदेवहिंडी, पृ० २९४-९०
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