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________________ इस प्रकार के सैकड़ों आख्यान प्राकृत जैन कथाग्रंथों में मिलते हैं जिनका उपयोग जैनधर्म के उपदेश के लिए किया जाता था। वैराग्योत्पादक लघु आख्यान एक आख्यान-हाथी पर सवार हो शत्रु पर आक्रमण करने जाते समय राजा सिंहराज ने देखा कि एक महाकाय सर्प ने मेंढक को पकड़ रक्खा है, कुरल पक्षी सर्प को पकड़कर खींच रहा है और कुरल को एक अजगर ने कसकर पकड़ रक्खा है। जैसे-जैसे अजगर कुरल को खींचता है, वैसे-वैसे कुरल सर्प को, और सपें मेंढ़क को पकड़कर खींचता है । इस हृदयद्रावक घटना को देखकर राजा के मन में वैराग्य हो आया ।' समराइच्चकहा, २ पृ. १४८-९। कुवलयमाला (२९९, पृ० १८८-८९) में चित्रकला द्वारा पशु-पक्षियों के दृश्य चित्रित किये गये हैं। सिंह हाथी का और हाथी सिंह का वध कर रहा है। सिंह ने मृग को मार दिया है। व्याघ्र ने आक्रन्दनपूर्वक वृषभ का वध कर दिया है । वृषभ ने अपने सींग से व्याघ्र का भेदन कर दिया । भैसों का युद्ध हो रहा है। हरिण भी परस्पर युद्ध कर रहे हैं। एक सर्प दूसरे सर्प को, एक मत्स्य दूसरे मत्स्य को और एक मगर दूसरे मगर को निगले जा रहा है। एक पक्षी दूसरे पक्षी को मार रहा है । मोर सर्प को खा रहा है। मकड़ी के जाले में फँसी हुई मकड़ी को दूसरी मकड़ी ने पकड़ लिया है। भूखी छिपकली ने एक कीड़े को पकड़ रक्खा है । श्यामा ने छिपकली को पकड़ लिया है ।यह श्यामा एक कीड़े को चाँच में दबाये आकाश में उड़ रही थी कि इसे दूसरे पक्षी ने पकड़ लिया। जब यह पक्षी जमीन पर गिरा तो इसे एक जंगली बिलाव ने पकड़ लिया। बिलाव को जंगली सूअर ने, सूअर को चोते ने, चीते को तेंदुए ने, तेंदुए को व्याघ्र ने, व्याघ्र को सिंह ने और सिंह को शरभ ने पकड़ रक्खा है। उत्तराध्ययन (२५ वां अध्ययन, शान्त्याचार्य, बृहद्वृत्ति) में इसी तरह का अन्य आख्यान आता है। जयघोष जब गङ्गास्नान करने जा रहे थे तो उन्होंने देखा कि मेंढक को एक सांप ने डस रक्खा है और उस सांप को एक मार्जार ने, तथा चींची करते हुए मेंढ़क का सांप भक्षण कर रहा है और तड़फड़ाते हुए सांप को मार्जार । यह देखकर जयघोष ब्राह्मण को वैराग्य उत्पन्न हो गया और गंगा पार पहुँचकर उसने साधु के पास श्रमणदीक्षा ले ली। उत्तराध्ययन नियुक्ति (४६५-६७) में मार्जार के स्थान . पर कुरल का उल्लेख है। - कोरमंगल के बस्वेश्वर मंदिर (इस जैन मंदिर का निर्माण होयसलराज बल्लाल द्वितीय के राज्याभिषक के समय सेनापति वूचिराज द्वारा ११७३ ई. में किया गया था) में एक दूसरे का नाश करने वाले जानवरों की यह शृङ्खला चित्रित है। यहां गुण्डमेरुण्ड शरभ को, शरभ सिंह को, सिंह हाथी को, हाथी सर्प को और सर्प हरिण को निगल रहा है। इसी शृङ्खला में एक साधु का चित्र है । एम.बी. एमेनियन के अनुसार, इस प्रकार की शृङ्गला के माध्यम से धर्म की ओर प्रवृत्त करने का उल्लेख सर्वप्रथम जैन प्रन्थों में पाया जाता है। देखिए, जरनल आफ अमेरिकन ओरिटिएल सोसायटी (६५) में 'स्टडीज इन फोकटेल्स आफ इंडिया; ३' नामक लेख । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002634
Book TitlePrakrit Jain Katha Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages210
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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