________________
कल्पसूत्र पुरुषादानीय अर्हन्त पाश्व' पंच ।वशाखा वाले थे । अर्थात उनके पांचो कल्याणकों में विशाखा नक्षत्र आया हुआ था । जैसे (१) पाश्व' अरहन्त विशाखा नक्षत्र में च्युत हुए, च्युत होकर गर्म में आये । (२) विशाखा नक्षत्र में जन्म ग्रहण किया । (३) विशाखा नक्षत्र में मुण्डित होकर घर से बाहर निकले अर्थात् उन्होंने अनगारत्व ग्रहण किया। (४) विशाखा नक्षत्र में उन्हें अनन्त, उत्तमोत्तम, व्याघातरहित, आवरणरहित, सम्पूर्ण, प्ररिपूर्ण केवलज्ञान, केवलदर्शन, उत्पन्न हआ । (५) भगवान पाश्व' विशाखा नक्षत्र में ही निर्वाण को प्राप्त हुए ।1
पुरुषादानीय अर्हत् पाश्व' जब ग्रीष्म ऋतु का प्रथम मास, प्रथम पक्ष अर्थात् चैत्र मास का कृष्ण पक्ष था, उस चैत्र कृष्णा चतुर्थी के दिन बीस सागरोपम की आयु वाले प्राणत नामक कल्प से आयुष्य पूर्ण कर दिव्य आहार, दिव्य जन्म और दिव्य शरीर छटते ही शीघ्र च्यवन करके इसी जम्बूद्वीप के भारतवष की वाराणसी नगरी में अश्वसेन राजा का रानी वामादेवी की कुक्षि में, जब रात्रि का पूर्वभाग समाप्त हो रहा था और पिछला भाग प्रारम्भ होने जा रहा था, उस सन्धिवेला में-मध्यरात्रि में विशाखा नक्षत्र का योग होते ही गम रूप में उत्पन्न हुए ।2।
पुरुषादानीय अर्हत् पाश्व तीन ज्ञान से युक्त थे । 'मैं कहाँ से च्युत होऊँगा' यह जानते थे । 'च्युत होते हुए नहीं जानते थे' और 'च्युत हो गया हूँ' जानते थे ।
हेमन्त ऋतु का द्वितीय मास, तृतीय पक्ष, अथात् पौष मास के कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन, नौ माह पूर्ण होने पर और साढे सात रात-दन व्यत.त होने पर रात्रि का पूर्व भाग समाप्त होने जा रहा था और पिहला भाग प्रारभ होने जा रहा था, उस सन्धि_ बेला में अर्थात मध्यरात्रि में विशाखा नक्षत्र का योग होते ही, आरोग्य वाली माता आरोग्यपूर्वक पुरुषादानीय अर्हत् पाश्व' नामक पुत्र को जन्म दिया ।
जिस रात्रि को पुरुषादानीय अहत् पादव ने ..म ग्रहण विया, इस रात्रि को बहुत से देव और देवियां जन्म कल्याणक मनाने के लिए आई, जिससे वह रात्रि प्रकाशमान हो गई और देव-देवियों के वार्तालाप से शब्दायमान भी हो गई । माता-पिता ने कुमार का नाम पाव रखा ।
पुरुषादानीय अर्हत् पार्श्व दक्ष थे, दक्ष प्रतिज्ञा बाले थे, उत्तम रूप वाले, सर्व गुणों से युक्त भद्र व विनीत थे । वे तीस वर्ष तक गृहवास में रहे । उसके पश्चात अपनी परम्परा का पालन करते हुए लोकांतिक देवों ने आकर इष्टवाणी के द्वारा इस प्रकार कहा“है नन्द (आनन्दकारी) तुम्हारी जय हो, विजय हो ! हे भद्र ! तुम्हारी जय हो, विजय हो"। 1. सू. १४८
. सूत्र० १५१ 2 सूत्र० १४९
5. सूत्र० १५२ 3. सूत्र० १५०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org