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________________ आवश्यकनियुक्ति तीर्थकरों में महावीर, अरिष्टनेमि, पाव, मल्लीनाथ और वासुपूज्य ये सभी राजकुमार थे तथा अन्य सभी तीर्थकर राजा थे ।1 पाश्व' का जन्म राजकुल में विशुद्ध क्षत्रिय वंश में हुआ था । उन्होंने राज्याभिषेक की इच्छा नहीं की थी । वे कुमारावस्था में ही प्रव्रजित हुए थे। उन्होंने ३०० शिष्यों के साथ प्रव्रज्या ली थी। उन्होंने जीवनकाल के प्रथम वय में प्रव्रज्या ली थी । पार्श्व ने तीन दिन के उपवास के पश्चात् प्रव्रज्या ली थी । पार्श्व ने आश्रमपद नामक उद्यान में दीक्षा ली थी । पाश्व' पूर्वाह्न में दीक्षित हुए थे । मगध और राजगृह नगरों में प्रायः पार्श्व का विहार हुआ । तत्पश्चात् अनार्यभूमि में भी उन्होंने विचरण किया था । चैत्र मास की चतुर्थी, विशाखा नक्षत्र के योग में, पाव को केवलज्ञान हआ। आश्रमपद में ही केवलज्ञान हुआ था । पाश्व' ने दीक्षा के समय तीन दिन का उपवास रक्खा ।11 तीस वर्ष की वय म दाक्ष ली और सत्तर (७०) वर्ष तक उन्हों ने दीक्षाव्रत का पालन किया ।12 पाश्व' ने प्रथम भिक्षा कूपकट नामक ग्राम में ली थी, और प्रथम भिक्षा देने वाला धन्य नामक व्यक्ति था ।14-15पावं का शरीर नौ हाथ ऊँचा था।15 उनका जन्मस्थान वाराणसी था IT अरिष्टनेमि और पाव के बीच ब्रह्म नाम का चक्रवर्ति हुआ था ।17 पाश्व' की माता जब गर्भिणी थी तो उनके पार्श्व (पास) में से सर्प निकला था इससे उनका नाम पाव पड़ा।18 उनकी माता का नाम वम्मा (वामा) था ।19 नेमिनाथ से पाश्व जिन का समय ८३३५० और पार्श्व से महावीर के बीच का समय २५० वष का था ।20 पाश्व'का नील वण था ।21 उनका काश्यप गौत्र था । 22 सम्मेतशिखर पर पाश्व का स्वर्गवास हआ था । 23 तेतीस व्यक्तिओं के साथ पाश्व' का निर्वाण हुआ ।24 उनकी १०० वर्ष की उम्र थी ।25 वे जब पैदा हुये थे तब तीनज्ञानवाले थे और जब दीक्षित हुए तब वे चार ज्ञानवाले थे (मति, श्रुत, अवधि और मनः पर्यय)। 1. आवश्यकनियुक्ति, व भद्रबाहुकृत, गाथा न. २२१. 2. गाथा न० २२२ 15. गाथा न० ३८० 3. गाथा न. २२४ 16. गाथा न. ३८४ 4. गाथा न. २२६ 17. गाथा न० ४१९ 5. गाथा न. २२८ 18. गाथा न० १०९८ 6. गाथा न० २३१ 19. गाथा न० ३८६ 7. गाथा न. २३२ 20. भाष्य गाथा १७, ८२ 8. गाथा नं० २३४ 21. गाथा ३७६ 9. गाथा न. २५२ 10. गाथा न० २५४ 22. गा० ३८१ 11. गाथा न० २५५ 23. गा० ३०७ 12. गाथा न० २९९ 24. गा० ३०८ 13. गाथा न. ३२५ 25. गा० ३०५ 14. गाथा न. ३२९ 26. गा० ११० आवश्यकनियुक्ति, भद्रबाहुकृत, विजयदानसूरि जैन सीरीज, सूरत, वि० सं० १९३९-४१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002632
Book TitleParshvanatha Charita Mahakavya
Original Sutra AuthorPadmasundar
AuthorKshama Munshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1986
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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