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________________ सोम,श्रीधर, वीर्य और भद्रयश हैं।1 पुरुषादानीय पार्श्वनाथ अरहन्त वज्रऋषभ नाराच संघयन वाले और समचतुरस्त्र संस्थान वाले थे तथा वे सात हाथ ऊँचे थे।2 समवायाङ्गसूत्र श्रीपार्श्वनाथ अरहंत के आठ गण और आठ गणघर थे । उनके नाम इस प्रकार है :शुभ, शुभघोष, वसिष्ठ, ब्रह्मचारी, सोम, श्रीधर, वीरभद्र, और यश । श्रीपाल नौ हाथ ऊँचे थे । उनकों सोलह हजार साधुओं क उत्कृष्ट श्रमणसंपदा थी । श्रीपाश्र्व तीस वर्ष गृहस्थाश्रम में रहने के पश्चात् घर से निकल कर ' अनगार-प्रव्रजित ' हुये थे। उनकी अतिस हजार साध्वीयों रूपी उत्कृष्ट साध्वीसंपदा थी ।7 श्रीपार्श्व सत्तर वष की अवस्था तक श्रमणपर्याय पाल कर सिद्ध, बुद्ध और यावत् सर्व दुःख से रहित हुए थे । पाश्वनाथ सौ वर्ष की आयु पालन के पश्चात् सिद्ध हुए थे ।' पार्श्व की साढे तीन सौ चौदपूर्वीनी' संपदा थी 110 श्री पार्श्व की देव, मनुष्य और असुर लोक के विषय के वाद में पराजय न पाये ऐसी छ: सौ वादीयों की उत्कृष्ट सम्पदा थी ।11 श्रीपाश्व के एक हजार जिनौ (केवली) थे । उनके एक हजार शिष्यों ने कालधर्म प्राप्त किया था। उनके. अग्यारस क्रियलन्धि वाले साधु थे ।13 उनकी तीन लाख सताइस हजार उत्कृष्ट श्राविकाओं की संपदा थी 114 1. ६१७, ४२९ नोट :- आवश्यकनियुक्ति में दस गण-गणधर बतलाये है । स्थानान और पर्युषण (कल्पसूत्र का अंतिमभाग) में आठ गण-गणधर कहे हैं। समवायाङ्ग में भी आठा ही बतलाये गये हैं। 2. ६९०, ४५५ । स्थानांग अभयदेव टीका, आगमोदय समिति, मेहसाणा, वि० सं० १९१८-२० । 3. सूत्र ८, पृ० २७ 9. सूत्र १००, पृ० १९६ 4. सूत्र ९, पृ० ३० 10. सूत्र १०५, पृ० १९८ 5. सूत्र १६, पृ० ६२ 11. सूत्र १०९, पृ० २०१ 6. सूत्र ३०, पृ० १०७ 12. सूत्र ११३, पृ. २०४ 7. सूत्र ३८, पृ० १३३ 13. सूत्र ११४, पृ० २०५. 8. सूत्र ७०, पृ० १६३ 14. सूत्र पृ० २०७ -समवायाङ्गसूत्र ( चतुर्थ अंग ), श्री अभयदेव कृतटीका, आगमोदयसमिति, श्री जैन धर्म प्रसारक सभा मेहसाणा, वि. सं. ०१९९५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002632
Book TitleParshvanatha Charita Mahakavya
Original Sutra AuthorPadmasundar
AuthorKshama Munshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1986
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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