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तित्थोगाली
श्री पार्श्व भगवान प्राणत कल्प से च्युत हुए थे । 1 जिस समय भरतक्षेत्र में पार भगवान तीर्थ कर थे उसी समय ऐरावतक्षेत्र में अग्निदत्त नामक तीर्थंकर विद्यमान थे । पार्श्वनाथ एवं उग्निदत्त- इन दोनों तीर्थ करों का जन्म विशाखा नक्षत्र में हुआ था 12 पार्श्वनाथ का रंग प्रियांगु पुष्प के समान था । 3 पार्श्व नौ हाथ ऊँचे थे । 4 पार्श्व राजकुमार थे, राजा नहीं थे । 5 पार्श्व ने तीन दिन पश्चात् प्रव्रज्या ली थी 10. पार्श्व ने पूर्वाहून में दीक्षा ग्रहण की थी ।" व्यक्तियों के साथ दीक्षा ग्रहण की थी । पूर्वाहून में पार्श्व को ज्ञान प्राप्त हुआ था । पार्श्व के कुल आठ गणधर थे जिनमें आर्य दिन्न नामक प्रथम गणधर था 110 उनकी मुख्य साध्वी थी । 11 पार्श्व का सोलह हजार की और प्रसेनजित् नामक राजा पार्श्व का भक्त था | 12
संख्या
पुष्पचूला नाम की का शिष्य परिवार था.
भगवान महावीर से दो सौ पचास वर्ष पूर्व भगवान पार्श्व का जन्म हुआ था । 13 जब पार्श्व का भारतवर्ष में निर्वाण हुआ था ठीक उसी समय ऐरावत क्षेत्र में अग्निदत्त तीर्थकर निर्वाण को प्राप्त हुए थे । और इन दोनों तीर्थंकरों का स्वर्गवास विशाखा नक्षत्र में, पूर्व रात्रि के समय में हुआ था 114
स्थानाङ्गसूत्र
भगवान पार्श्वनाथ ने तीन
सौ पुरुषों के साथ मुण्डन किया था और प्रव्रज्या ली थी 115 पार्श्वनाथजिन के पांच कल्याणक अर्थात् च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान और निर्वाण विशाखा नक्षत्र में हुए थे ।10 पुरुषादानीय पार्श्वनाथ अरहत के ६०० वादी थे और वे देवता, मनुष्य और असुरों से भी अपराजित थे ।17 पुरुषादानीय अरहत पार्श्वनाथ के आठ गण एव आठ गणधर थे। गणधरों के नाम क्रमश: शुभ, आर्यघोष, वसिष्ठ, ब्रह्मचारी,
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तिरथोगाली गा० नं० ३११
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के उपवास के पार्श्व ने ३००
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23 ४६९
तित्थोगाली गा० नं० ४९२ तिस्थोगाली गा० नं० ५१९
तित्थोगाली गा० नं० ५४४
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23 ४०२, ४१८ ४६२
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'तिस्थोगाली पईण्णय'- संपा० डो० २० म० शाह, (शीघ्र प्रकाश्यमान) ला० द० विद्यामंदिर, अहमदाबाद ।
15. सू० २२९, पृ० १७८
16. ४११, ३०७
17.
५२०, ३६८
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