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________________ चित्त नामक सारथि राजा के काम से श्रावस्ती नगरी में आता है, वहाँ उसकी केशीश्रमण से मेंट होती है । केशीश्रमण द्वारा चातुयाम धर्म को सुनकर वह अत्यन्त श्रद्धामय हो उठता है तथा श्रमणोपासक बनता है । वह केशीकुमार के पास पाँच अणुव्रतों वाले एवं सात शिक्षाव्रतों वाले गृहस्थ धर्म को अंगीकार करता है । فق उसके पश्चात् एक बार भ्रमण करते हुए केशीश्रमण अपने शिष्यों सहित श्वेताम्बिका नगरी में आते है । वहाँ चित्त सारथि के आग्रह से प्रदेशी राजा केशीश्रमण से मिलने जाते हैं एवं राजा केशीश्रमण से जीव के अस्तित्व के विषय में चर्चा करते हैं । और जब उन्हें जीव के अस्तित्व की ठीक प्रकार से प्रतीति होती है तब वे श्रमणोपासक के व्रत का अंगीकार करते हैं । 1 2 निरयावलिकासूत्र उस समय, उस काल, पार्श्व नामक अरिह ंत पुरुषों में आदरणीय, तीर्थ के आदि कर्त्ता, ना हाथ ऊंचे शरीर वाले, सोलह हजार साधुओं के और अत्रीस हजार साध्वीयों के साथ श्रावस्ती के कोष्टक नामक बगीचे में आये और वहाँ अंगती नाम का गाथापति वंदन करने गया और उपदेश सुनकर साधु बन गया | 3 पार्श्वनाथ को राजगृह में आगमन और गुणशील नामक उद्यान में निवास, और भूता नामक वृद्धकन्या का पार्श्वनाथ के समीप जाना, उपदेश सुनना और प्रब्रजित होकर दीक्षित हो जाना और कुछ समय पश्चात् उसका शिथिलाचरित होना और तब मर करके उसका श्रीदेवी बनना 14 (श्रीपाद राजगृह में आते है तथा गुणशील नामक उद्यान में निवास करते है । वहाँ भूता नामक वृद्धकन्या श्रीपार्श्व के समीप आती है और उपदेश सुनकर, प्रब्रजित होकर दीक्षित होती है। कुछ समय के पश्चात् वह शिथिलाचरित होकर मृत्यु प्राप्त कर श्रीदेबी बनती है । इसका यहाँ वर्णन किया गया है । ) 1. राजप्रश्नीयसूत्र, द्वि० भाग, मलयगिरिवृत्ति, बेचरदासजी द्वारा सम्पादित, अहमदाबाद, वि० सं० १९९४ । सू० ५३ से आरम्भ..... I नोट :- जिस प्रकार जैनों के आगम में प्रदेशी राजा का वर्णन प्राप्त होता है ठीक उसी प्रकार का वर्णन बौद्धों के त्रिपिटक में "पायासीसुत्त" में प्राप्त होता है । 2. Jain Education International श्री दलसुखभाई मालवणिया, उत्थान, महावीर अंक । 3. निरयावलिका सूत्र, आगमोदयसमिति, मेहसाणा, वि० सं० १९९०, वर्ग ३ अध्ययन १ निरयाव लेकासूत्र, ४, १ । . For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002632
Book TitleParshvanatha Charita Mahakavya
Original Sutra AuthorPadmasundar
AuthorKshama Munshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1986
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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