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नवमिका, हनी, पुष्पवती,भुजगा, भुजगवती, महाकच्छा, अपराजिता, सुघोषा, विमला, सुस्वरा, सरस्वती, सूर्यप्रभा, आतपा, अचिर्माली, प्रभंकरा, पद्मा, शिबा, सती, अंज, रोहिणी, नवमिका, अचला, अप्सरा, कृष्णराजी, रामा, रामरक्षिता, वसु, वसुगुप्ता, वसुमित्रा, वसुन्धरा । (प्रस्तुत काव्य पार्श्वनाथ चरित्र में ये सब देवियाँ उल्लिखित हैं आर उनके नाम भी एक है)।
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र के द्वितीय श्रुत स्कन्ध में आई पार्श्व की शिष्या की कथाओं पर दृष्टिपात करने से श्री पार्श्व के विहारस्थलों की भी जानकारी हासिल होती है जो निम्नतः है
(१) आमलकप्पा - सू. १४८-१४९ (२) श्रावस्ती - सू० १५० (३) चम्पा - सू० १५२ (४) नागपुर -सू० १५३ (५) साकेत - सू० १५४ (६) अरक्खुरी (अरक्षुरी) - सू० १५५ (७) मथुरानगरी - सू० १५६ (८) श्रावस्ती, हस्तिनापुर, काम्पिल्यपुर, साकेतनगर - सू० १५७ (९) वाराणसी - सू० १५८ (१०) रायगिह (राजगृह), श्रीवस्ती, कौशाम्बी - सू० १५८
(११) नागपुर में, सहस्राम्र वन में कमला को दीक्षा दी - सू० १५३ अन्य जानकारियाँ - (१) जितशत्रु चपा नगरी का राजा था । उसका मन्त्री सुबुद्धि उसे जैन धर्म के
प्रति श्रद्धालु बनाता है और अन्त में वे दोनों ही पार्श्वनाथ के चातुर्यामिक धर्म में दीक्षा लेते है।
ज्ञाताधर्मकथा - १, १२. (२) सुबुद्धि - ये चपा नगरी के राजा जितशत्र का मन्त्री था । यह प्रथम श्रमणोपासक था तत्पश्चात् उसने दीक्षा ली थी ।
ज्ञाताधर्मकथा १, १२. (३) थेर - उनके नाम नहीं दिये गये हैं । वे जितशत्रु एवं सुबुद्धि के दीक्षागुरु थे।
ज्ञाताधर्मकथा १, १२.1 राजप्रश्नीयसूत्र भगवान पार्श्वनाथ की शिष्य परम्परा में स्थित केशी नामक कुमार श्रमण जो कि कुमारावस्था में ही दीक्षित हुए थे, सर्वगुणपसन्न वे मति, श्रुत, अवधि एव' मनःपर्यय - चार ज्ञानों के अवधारक थे ।
एक बार, तीर्थ कर परम्परा के अनुसार विहार करते हुए वे अपने पांचसौ शिष्यों के साथ श्रावस्ती नगरी के कोष्ठक चैत्य में आकर ठहरे । उस समय प्रदेशी राजा का 1. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अभयदेवकृत टीका सहित, आगमोदयसमिति, मेहसाणा, वि० सं० १९९१
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