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विचार किया । श्री गौतम स्वामी केशीकुमार के ज्येष्ठ कुल में होने का विचार करके अपने शिष्य संघ के साथ तिन्दुक वन में आये । ....केशीकमार ने प्रथमत: गौतम स्वामी से पूछा कि एक ही कार्य के लिए प्रवृत्त होने पर भी क्या कारण है कि महावीर ने पंचमहाव्रत रूपी धर्म का उपदेश दिया जब कि पार्श्व ने चारयामरूनी धर्म का उपदेश दिया है । __गौतम स्वामी ने प्रत्युत्तर में कहा कि प्रथम तीथ कर के मुनि ऋजुजड़ और अन्तिम तीर्थकर के साधु वक्रजड़ तथा मध्यके ऋजुप्रज्ञ होते हैं । अत: धर्म के दो भेद हुए... ।
तत्पश्चात् केशीकुमार ने गौतम स्वामी से दूसरा प्रश्न किया कि पार्श्व ने प्रधान वस्त्र धारण करने का धर्म प्रचलित किया जब कि महावीर का धर्म अचेलक धर्म है- अतः इस भेद का क्या कारण है ?
__ गौतम स्वामी ने उत्तर में कहा कि लाक में प्रतीति के लिए, संयम निर्वाह के लिए, ज्ञानादि ग्रहण करने के लिए और वर्षाकल्पादि में संयम पालने के लिए उपकरण और लिंग का आवश्यकता है। अन्यथा दानों ही तीर्थकरों की प्रतिज्ञा तो निश्चय से मोक्ष के सद्भूत साधन ज्ञान, दर्शन और चारित्ररूप ही है ।
इसके पश्चात् केशीकुमार ने गौतम स्वामी की प्रज्ञा से प्रभावित होकर अनेकों धर्ममोक्ष आदि तत्त्वों पर प्रश्न पूछे और प्रत्युत्तरों से प्रसन्न होकर उन्हें।ने गौतम स्वामी की सिर झुका कर वन्दना की और पांच महाव्रत वाले धर्म को भाव से ग्रहण किया क्योंकि प्रथम और आन्तम तीर्थंकर के मार्ग में यही धर्म सुख देने वाला है ।।
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र ज्ञाताधर्नकथांगपूत्र के द्वितीय श्रुतिध में कई कथाएँ वर्णित हैं जिन कथाओं द्वारा धर्म का विवेचन किया गया है । (इस सूत्र में महावीर के अन्तेवासी आर्य सुधर्म नामक स्थावर से उनके अन्तेवासी आर्य जम्बू नामक अनगार द्वितीय श्रुत स्कन्ध का महावीर द्वारा किये गये अर्थ के विषय में प्रश्न करते है और तब वह कमशः उन कथाओं का वर्णन करते हैं।) इस सूत्र में जितनी भी कथाएँ आई हैं उनमें भगवान पार्श्व की शिष्याओं का वर्णन है। वे सभी पार्श्व अरहंत के समीप दीक्षित हुई थीं । वे सभी पुष्पचूला आर्या की शिष्या बनी थीं । मृत्यु प्राप्त करके वे सभी ईशान इन्द्र की अग्रमहिलियो बनीं । सभी की स्थिति नौ पल्योपम की कही गई है। सभी विदेह क्षेत्र में उत्पन्न होकर सिद्ध, बुद्ध व मुक्त होंगी । उन सब के नाम निम्नलिखित है : .
काली, राजी, रजनी, विद्युत, मेघा, शुभा, निशुभा, रंभा, निरंमा मदना, इला, सतेरा, सौदामिनी,इन्द्रा, घना, विश्रुता, रुचा, सुरुचा, रुचांशा, रुचकावती, रुचकान्ता, रुचप्रभा, कमला, कमलप्रभा, उत्पला, सुदर्शना, रूपवती, बहुरूपा, सुरूपा, सुभगा, पूर्णा, बहुपुत्रिका, उत्तमा, मारिका, पद्मा, वसुमती, कनका, कनकप्रभा, अवतसा, केतुमती, वज्रसेना, रतिप्रिया, रोहिणी ३, उत्तराध्ययनसूत्र, संपा० जीवराज घेलामाई दोशी, अहमदाबाद, १९२५, अध्याय २३ ।
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