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________________ हैं या कालान्तर से उत्पन्न होते हैं-यह प्रश्न पूछा था । महावीर स्वामी ने उत्तर दिया - नरक में जीव निरन्तर उत्पन्न होते हैं । और कालान्तर से भी उत्पन्न होते है ।। श्री पाश्व सन्तानीय गांगेय अनगार ने महावीर स्वामी से प्रश्न पूछा कि विद्यमान नैरेयिक उत्पन्न होते हैं अथवा अविद्यमान नैरेयिक उत्पन्न होते हैं। भगवान महावीर ने इस प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि विद्यमान नैरेयिक ही उत्पन्न होते हैं अविद्यमान नरेविक उत्पन्न नहीं होते है। इसी प्रकार गांगेय अनगार देव के विषय में भी प्रश्न करते हैं और उसके पश्चात् महावीर स्वा महावीर स्वामी के समय में पार्श्वनाथ के सन्तानीय स्थविर भगवन्त पांच सौ (५००) साधुओं के साथ तुगिया नगरी के बाहर पुष्पवती उद्यान में ठहरे थे । वे स्थविर भगवन्त जातिसम्पन्न, कुलसम्पन्न, बल, रूप, विनय, शान, दर्शन, चारित्र, लज्जा, लाघव, नम्रता आदि गुणों से युक्त ओजस्वी, तेजस्वी, प्रतापी और यशस्वी थे। उन स्थविर भगवन्तों के पधारने की बात तुंगिका नगरी में फैल गई और तब जनता उनकी वन्दना हेतु श्रद्धा सहित जाने लगी । श्रमणोपासकों ने स्थावर भगवन्तों का धर्मोपदेश सुना, साथ ही संयम एवं तप का फल क्या है ? तथा देव देवलोक में किस कारण से उत्पन्न होते हैं ? ये प्रश्न पूछे । उत्तर में उन स्थविर भगवन्तों ने बतलाया कि संयम का फल अनाश्रवपन है और तप का फल व्यवदान है तथा देव 'पूर्वतप' या पूर्वसंयम' से देवलोक में उत्पन्न होते हैं।' उत्तराध्ययनसूत्र त्रिलोक पूज्य, धर्म तीर्थ कर, सर्वज्ञ सर्वदर्शी श्री पार्श्वनाथ नाम के अर्हन्त जिनेश्वर हुए हैं। उनकी परंपरा में केशीकुमार श्रमण हए । के शीकुमार एक बार अपने संघ सहित श्रावस्ती नगरी में आये और तिन्दुक उद्यान में ठहरे । उस समय जिनेश्वर भगवान वर्धमान स्वामी धर्मतीर्थ के प्रवर्तक थे । उनके शिष्य गौतम स्वामी थे। भाग्यवशार गौतम स्वामी भी अपनी शिष्यमण्डली के साथ श्रावस्ती नगरी के बाहर कोष्टक उद्यान में ठहरे । दोनों की शिष्यमण्डली ने एक दूसरे को जाना और तब परस्पर उनमें यह प्रश्न उठ खड़ा हुआ कि हमारा धर्म कैसा है और इनका धर्म कैसा है तथा हमारे और इनके आचार धर्म की व्यवस्था कैसी है ? महामुनि पार्श्वनाथ ने चारयामरूप धर्म का और वर्धमान स्वामी ने पाँच याम रूप धर्म का उपदेश दिया है। एक सचेलक धर्म है और दूसरा अचेलक धर्म है। (पार्श्व का धर्म सचेलक है व महावीर का धर्म अचेलक है)। एक ही कार्य के लिए प्रवृत्त दोनों तीथ"करों में यह भेद क्यों कर है ? अतः केशीकुमार और गौतम स्वामी ने अपने शिष्यों की शंका का समाधान करने के लिए परस्पर मिलने का 1. व्याख्याप्रज्ञप्ति, ९, ५, सू० ३७१ पृ० ८०४-८०५ 2. व्याख्याप्रज्ञप्ति, ९, ५, सू० ३७६-३७८, पृ० ८३३ । 3. व्याख्याप्रज्ञप्ति, २, ५, सू० १०७-११० ० २४०-२४७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002632
Book TitleParshvanatha Charita Mahakavya
Original Sutra AuthorPadmasundar
AuthorKshama Munshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1986
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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