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________________ ६५ पार्श्व के जीवन से सम्बन्धित सामग्री : (अ) मूल (१२) आगमों में प्राप्त पार्श्व सामग्री का संकलन और आगमों में पार्श्वपर्यावलोकन : आचाराङ्गसूत्र श्रमण भगवान महावीर स्वामी के पिता सिद्धार्थ एवं माता त्रिसला पाश्र्वापयत्यय एवं श्रमणोपासक थे । इन्होंने श्रमणोपासक की पर्याय का पालन करके देवत्व को प्राप्त किया था । महावीर के चाचा सुपार्श्व, ज्येष्ठ भ्राता नन्दीवधन, बड़ी बहन सुदर्शना – ये सभी पाश्र्वापत्यीय श्रमणोपासक थे । 1-2 सूत्रकृताङ्गसूत्र सूत्रकृताङ्गसूत्र के द्वितीय अतस्कन्ध के " नालन्दीयाध्ययन" नामक सप्तम अध्ययन में भगवान महावीर के प्रमुख शिष्य भगवान गौतम स्वामी के साथ भगवान पार्श्वनाथ के शिष्य की सन्तान उदक पेढालपुत्र की प्रत्याख्यान - त्याग विषयक चर्चा का वर्णन आया है । पार्श्व परंपरा के शिष्य उदक पेढालपुत्र के कथनानुसार गौतम स्वामी के अनुयायी कुमार पुत्र नामक श्रमण निर्ग्रथ श्रावकों को जिस पद्धति से प्रत्याख्यान कराते हैं वह उचित नहीं है कारण कि उस पद्धति द्वारा प्रतिज्ञा का पालन नहीं हो सकता है अपि तु भंग होता है । उदक पेढालपुत्र के मतानुसार प्रत्याख्यान वाक्य में मात्र त्रस पद का प्रयोग न करके यदि भूतपद के साथ उस वाक्य का प्रयोग किया जाय अर्थात् सभूत प्राणी को मारने का स्याग है - ऐसा बाक्य कहें तो प्रतिज्ञा भंग का दोष नहीं होता स्वामी से कहता है कि इस प्रकार प्रत्याख्यान करने से स्थावर रूप घात होने पर भी प्रतिज्ञा भंग नहीं होती है अन्यथा प्रतिज्ञा भंग होने में कोई संदेह नहीं है । गौतम के अनुसार जिसको त्रस कहते है उसी को त्रसभूत भी कहते है इसलिए त्रस पद से जो अथ प्रतीत होता है वही अथ भूत शब्द के प्रयोग से भी प्रतीत होता अतः 'भूत' शब्द के जोड़ने का कोई प्रयोजन नहीं है । आदि...... । । उदक पेढालपुत्र गौतम से उत्पन्न त्रसों के 1. आचारांगसूत्र, शीलांकटीका, आगमोदयसमिति, रतलाम, वि० सं० १९९६, द्वितीयश्रुतस्कन्ध, सूत्र संख्या १७७-१७८. 2. नोट : मूल में सुपार्श्व, नन्दीवधन एवं सुदर्शना महावीर के संबधी थे ऐसी ही जानकारी प्राप्त होती है वे पाश्र्वापत्यीय थे ऐसा वहाँ नहीं लिखा- मात्र महावीर के माता-पिता को ही पाश्र्वापत्यीय बताया गया है । यदि वे महावीर के व्यक्तियों के नाम का विशिष्ट संघ में होते तब तो अवश्य ही संकलनकार ऐसे निर्देश करते । - स्पष्ट दलीलों के साथ पं० दलसुखभाई मालवणियाजी ने यही युक्त बताया है कि काका सुपार्श्व भ्राता नन्दीवर्धन एवं बड़ी बहन सुदर्शना को पाश्र्वापकीयों की श्रेणी में ही रखना चाहिए । 'पापस्यीय और पार्श्व संघ,' पं० श्री दलसुखभाई मालवणिया, उत्थान, महावीर अंक, बम्बई, १९३१ । प्र - ९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002632
Book TitleParshvanatha Charita Mahakavya
Original Sutra AuthorPadmasundar
AuthorKshama Munshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1986
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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