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________________ असमास अकार विहाय चन्द्र जडमङ्कपड्किलं सरोरुहं पङ्ककलङ्कदूषितम् । उवास लक्ष्मीरकलङ्कमुच्चैरिति प्रतक्र्येव तदीयमाननम् ।। ५, २५ ॥ अनुप्रास अलंकार मुख्य व्यतिरेक का गौण अंग है । इस अनुप्रास में खास तौर पर ङ्क की आवृत्ति की गई है । इससे अनुप्रास का उठाव मधुर बन गया है । पाद के मध्य में अनुप्रास का प्रयोग किया गया है। तीनों पाद के मध्य में यह अनुप्रास है । इसकी कुल पांच बार आवृत्ति हुई है । यह श्रुतिमधुर अनुप्रास का उदाहरण है । "वर्णसाम्यमनुप्रासः” के अनुसार वर्गों की समान अनुप्रास है। महाकाव्य में प्राप्त उद्धरण प्रस्तुत महाकाव्य में दो स्थानों पर कवि पद्मसुन्दर ने दूसरे काव्य अथवा शास्त्रों से उद्धरण उद्धृत कर अपने काव्य में रखे है । चतुर्थ सर्ग के ९१ से १२६ तक के श्लोक उद्धृत प्रतीत होते हैं । यहाँ कवि 'उक्त च': 'अपि च', 'यद् उक्तम्', 'तदुक्तम्,' आदि कह कर श्लोकों उद्धृत करते हैं । इन श्लोकों में से सभी श्लोक उद्धरण ही हैं अथवा इन में से कुछ उद्धरण और कुछ कवि के स्ययं के श्लोक हैं, यह ज्ञात नहीं हो पाता । चतुर्थ सर्ग के कुल ३५ उद्धृत श्लोकों में से मात्र दो श्लोक ९५ व ९६ 'आत्मोदयः परज्यानि' व अन्यदा भूषणं पुसः', माघ के शिशुपालवध के द्वितीय सर्ग के क्रमशः ३० व ४४ वे क्लोक हैं। इसके अतिरिक्त अन्य श्लोक कहाँ के हैं, यह हमें ज्ञात नहीं हो सका है। ये श्लोक राजा प्रसेनजित् का मंत्री उन्हें राजनीति के तत्त्व को समझाने के लिए बोलता है। इसी प्रकार पंचम सर्ग के ६१ से ६७ तक के उद्धृत श्लोक किसी अजैन ग्रन्थ के है जिन्हें कवि ने पार्श्व द्वारा कमठ नामक तापस (ब्राझण) के अज्ञान व पाखण्ड से भरे कर्मकाण्ड को गलत सिद्ध करने के लिए एवं ब्राह्मण परम्परा के धर्म-ग्रन्थों में सच्ची तपस्या व सच्चा धर्म क्या है? यह समझाने के लिए बुलवाये है। यहाँ कवि द्वारा परचमी' को समझाने के लिए उनके शास्त्र से ही उद्धरण लेना समुचित प्रतीत होता है। ये श्लोक कहाँ के हैं, यह हमें ज्ञात नहीं हो सका है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002632
Book TitleParshvanatha Charita Mahakavya
Original Sutra AuthorPadmasundar
AuthorKshama Munshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1986
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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