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युद्धस्थल में एक और से कटा हुआ भी घोड़ा अपने स्वामी को ले जाता हुआ, क्रोधित होकर, शस्त्र के सामने दौड़ता हुआ लड़ने लगता था । यहाँ इस वर्णन में घोड़े की असीम वीरता का वर्णन कवि ने किया है जो अपने घायल होने पर भी अपने स्वामी के बल को दुगुना प्रोत्साहन दे रहा है, साथ ही अपने कर्तव्य का पालन भी कर रहा है । शंगार रस :
इस काव्य में शृंगार रस का वर्णन संभोग शृगार (नायक-नायिका मिलन) एवं विप्रलभ शृगार (नायक-नायिका बिछोह) के रूप में ना कर कवि ने शृंगार रस का चित्रण नारी एवं पुरुष के अनुपम सौन्दर्य वर्णन में किया है । उदाहरण के रूप में प्रथम सर्ग में वमन्धरा के सौन्दर्य वर्णन में श्लोक १६ से १९ तक; तृतीय सग' में महारानी वामा देवी की गर्मस्थ सौन्दर्यावस्था के चित्रण में श्लोक ६२ से ६७ तक, तथा तृतीय व चतुर्थ सर्ग में श्री पार्श्व के सौन्दर्य वर्णन में; एवं पंचम सर्ग में राजा प्रसेनजित् की पुत्री प्रभावती के अलौकिक सौन्दर्य वर्णन में श्लोक ३ से ३५ तक के श्लोकों में किया गया है । जिसका वर्णन विस्तार के साथ हमने सौन्दर्य-वर्णन' के अन्तर्गत किया है। यहां शृगार रस के सुन्दर उदाहरण के रूप में एक श्लोक रखते हैं। देखिए
श्रृंगार रस का उदाहरण :
विसारितारद्युतिहारहारिणौ स्तनौ नु तस्याः सुषमामवापतुः ।
सुगपगातीरयुगाश्रितस्य तौ रथाङ्गयुग्मस्य तु कुङ्कुमार्चितौ ।। ५, ९६ । । __ कवि ने अत्यन्त शृंगारिक वर्णन करते हुए प्रभावती के उज्जवल कान्तिवाले हार से मनोहर एवं ककुम से अर्चित स्तनों की उपमा देवनदी गंगा के तट पर स्थित चकवा. चकवी के जोड़े से दी है। कवि ने नारी के सौन्दर्य को दर्शाने के लिए अत्यधिक उपयुक्त एवं सुन्दर उपमा का उपयोग किया है। कधि की प्रतिज्ञा की समालोचना -
यद्यपि कवि ने अपने काव्य के आरम्भ में 'शृङ्गारभङ्गारके' कह कर मह प्रतिज्ञा की है कि वह अपने काव्य में शृंगार रस का सुन्दर चित्र प्रस्तुत करेगा तथापि वह अपनी इस प्रतिज्ञा को अक्षुण्ण रखने में सफल नहीं हुआ है । इसका कारण वस्तुतः यही रहा है कि कवि ने अपने काव्य के नायक तथा अन्य पात्रों का चयन इस प्रकार का कि उनको कहीं भी नायक अथवा नायिका से प्यार करने अथवा बिछुड़ने का अवसर ही नहीं प्राप्त हआ है। यदि कवि चाहता तो वह काव्य में से स्थान स्थान के अतिरेक उपदेशों व स्तुतियां को थोड़ा कम कर शृगार रस के दोनों ही प्रकार-संभोग शृंगार व विप्रलम्भ शृगार का पुट रख पाठक के मन को मुदित कर सकता था जैसा कि संस्कृत के अन्य महाकाव्यों में परम्परागत रूप से होता आया है। पर इस काव्य में ऐसा नहीं हुआ है। इसके स्थान पर इस काव्य में नारी एवं पुरुष के सौन्दर्य निरूपण के वर्णन में ही शृगार का पर्यवसान हुआ है ।
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