________________
कवि का छन्द प्रयोग
महाकवि क्षेमेन्द्र ने अपने 'सुवृत्ततिलक' ग्रन्थ में छन्दोयोजना के विषय में जो मियम लिखे हैं उसके अनुसार यह स्पष्ट है कि काव्य में रसों, भावो एवं वर्णनों के अनुकूल ही छन्दों का प्रयोग किया जाना चाहिए । इसके विपरीत जब काव्य में रस, भाव एवं वर्णनों के अनुरूप छन्दों की योजना नहीं की जाती है तब रीति-ग्रन्थकारों के अनुसार वह 'हतवृत्तता' नामक काव्यदोष गिना जाता है । रीति-ग्रन्थकारों के अनुसार जो. छन्द अथवा वृत्त रस के स्वमाव से विपरीत पड़ता है, उस छन्द का प्रयोग उस रस के लिए करना ही हतवृत्तत्व नामक दोष है ।1
कविवर क्षेमेंन्द्र के अनुसार किसी सर्ग के आरम्भ में, कथा के विस्तार में, उपदेश या वृत्तान्त कथन में अनुष्टुप छन्द का प्रयोग; शृगार के आलम्बनस्वरूप उदार नायिका के वर्णन में और शृंगार के अंगभूत वसन्त आदि के वर्णन में उपजाति छन्द का प्रयोग; भव्य चन्द्रोदय आदि विभावों का वर्णन रथोद्धता में, पाइगुण्य आदि नीति सम्बन्धी विषयों का वर्णन वंशस्थ छन्द में; वीर और रौद्र के मेल में वसन्ततिलका छन्दः सर्ग के अन्त में त ताल के समान मालिनी छन्द का प्रयोग, अध्याय को अलग करने या प्रारम्भ करते समय शिखरिणी छन्द का प्रयोग; उदारता, रुचि और औचित्य आदि गुणों के वर्णन के लिए हरिणी छन्द; आक्षेप, क्रोध और धिक्कार के लिए पृथ्वीभरक्षमा छन्द, वर्षा, प्रवास और विपत्ति आदि के वर्णन के लिए मन्दाक्रान्ता छन्द, राजाओं के शौर्य की स्तुति के लिए शार्दूलविक्रीडित छन्द तथा आंधी-बबंडर के लिए स्रग्धरा छन्द उपयुक्त होता है
क्षेमेन्द्र के छन्दोयोजना के विषय में बनाए गये नियमें। पर दृष्टिपात करने के पश्चात् जब हम अपने प्रस्तुत काव्य की छन्दोयोजना को देखते हैं तो हमें आलोचनात्मक दृष्टि से देखने पर यह ज्ञात होता है कि कवि पद्मसुन्दर का काव्य छन्दायोजना के नियमों के अनुकूल नहीं रचा गया है । मात्र एक ही छन्द का उपयुक्त प्रयोग कवि ने किया है - वह छन्द है अनुष्टु । इस छन्द का प्रयोग कथा के आरम्भ में. विस्तत कथा के संक्षेपीकरण में, साधारण घटनाओं के वर्णन में, उपदेश आदि के विवरण में किया जाता है । कवि पद्मसुन्दर ने अपने काव्य में इस छन्द का उपयोग इन्हीं सभी विवरणों के लिए किया है। कवि के काव्य के प्रायः सभी सगे इसी छन्द से भरे पड़े हैं। इस छन्द में वर्णन का प्रवाह बाधारहित गति से आगे बढ़ता है । महाभारत, रामायण एवं रघुवंश आदि महाकाव्यों का प्रिय छन्द यही अनुष्टुप् ही है ।
अनुष्टुप् छन्द के अतिरिक्त अन्य छन्दों का उपयोग कवि पद्मसुन्दर ने इस प्रकार किया है -
देखिए. श्री. रामगोविन्द शुक्ल द्वारा लिखित 'कालिदास कीछन्दोयोजना' नामक लेख, कालिदासग्रन्थावली, अलीगढ़, सं०, २०१६ वि०, तृतीय संस्करण, य खण्ड, पृ० १२१-१२२.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org