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________________ तत्पपावें तु यत् सर्पमपश्यज्जननी ततः । महान्धतमसे चक्र पार्श्व' नाम शिशोरिति ।। ४, १३ ।। कवि पहले कहता है कि देवे ने स्नात्रोत्सव की समाप्ति पर भगवान् को पार्श्व नाम से पुकारा, बाद में वह कहता है कि शिशु के पास से गुजरता सर्प माता ने देखा तब माता ने उसका नाम पार्श्व रखा। स्नात्रोत्सव की घटना के बाद सर्पदर्शन की घटना घटती है । अतः नामकरण के बारे में कुछ व्यत्यय जान पड़ता है । कवि ने अगले सर्ग में जो कहा है उसको वह अनन्तरवर्ती उत्तर सर्ग में भूल जाये यह क्या संभव है ? यह प्रश्न ही रह जाता है । क्या देव अपने अलौकिक ज्ञान से जान गये थे कि यह शिशु पाव' नाम का तीर्थकर होने वाला है ? अत: उन्होंने उस शिशु को 'पार्श्व' नाम से पुकारा ? यह संभावित उत्तर है । कवि की भाषा-शैली, रस, छन्द एवं अलंकार कवि की भाषा-शैली : प्रस्तुत काव्य की संस्कृत भाषा अत्यन्त सरल एवं बोधगम्य है । कवि की भाषा माधुर्य एवं प्रसाद गुणों से युक्त बैदर्भी रीति से सम्पन्न है । सम्पूर्ण काव्य में अधिकांशतः लम्बे समासों का प्रयोग नहीं किया गया है । काव्य का प्रमुख रस शान्त होने के कारण से भी कवि की भाषा माधुर्य गुण से परिपूर्ण है । इसके साथ ही काव्य में प्रयुक्त भाषा अत्यन्त सरल एवं बोध्य होने के कारण प्रसादमयी भी है। कवि पद्मसुन्दर की भाषा कविश्रेष्ठ कालिदास के समान ही प्रसन्नपदावली, पदलालित्य, बोधगम्यता, सरलता एवं मधुरता आदि गुणों से परिपूर्ण है । युद्ध वर्णन के समय कवि की भाषा ओज गुण से युक्त लम्बे समासों वाली तथा गौडी रीति से समलंकृत दिखलाई देती है जो वस्तुत: वर्णन के अनुकूल वर्णन के अनुरूप शैली : कवि की भाषा काव्य में उपस्थित वर्णनों के अनुरूप है । कवि प्रकृति चित्रण एवं शगार वर्णन के समय वैदर्भी रीति के अत्यन्त सुन्दर पदलालित्य एवं माधुर्य गुण से ओतप्रोत श्लोकों की रचना करता है तो युद्ध वर्णन एवं उपदेश आदि के समय उसकी भाषा थोड़ी क्लिष्ट ओज गुण से युक्त गौडी शैली बाली हो जाती है। वैदर्मी रीति व गौडी रीति के उदाहरण देखिए - वैदर्मी रीति का उदाहरण : तदीयजडाद्वयदीप्तिनिर्जिता वनं गता सा कदली तपस्यति । चिराय वातातपशीतकर्षणरधःशिरा नूनमखण्डितव्रता ॥ ५, १३ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002632
Book TitleParshvanatha Charita Mahakavya
Original Sutra AuthorPadmasundar
AuthorKshama Munshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1986
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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