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________________ उत्प्रेक्षा अलंकार द्वारा हाथियों के युद्ध का वर्णन भी दर्शनीय है गजानी कैगजा युद्धं दन्तादन्ति विचित्सवः । तडित्वन्तः पयोवाहा: प्रावृषेण्या इवाबभुः ॥ ४, १६८ ।। युद्ध के अंग-अग का वर्णन कर जहाँ कवि दोनों सैन्यों के युद्ध की समानता वर्षाकाल की शोभा से करता है, यहाँ तो कमाल ही कर देता है अथ हास्तिकसङ्घट्टनीलस्थूलघनाघनः । शरासारक्षतोद्भूतरुधिराम्भःप्लुतक्षमः ॥ ४, १७२ ।। कृतबाहलीककाम्बोजोश्वीयमायूरताण्डवः । स्फुरन्निस्त्रिंशचपलो निस्वानस्वानगर्जितः ।। ४, १७३ ।। कठोरदुघणाघाताश निर्घोषभीषणः । चलत्पाण्डुपताकालीबलाकाव्यातपुष्करः ।। ४, १७४ ।। धनुरिन्द्रधनुःशोभी सैन्ययोरुभयोस्तदा । विस्फारसमरारम्भः पुपोष प्रावृष: श्रियम् ।। ४, १७५ ।। कवि ने क्षत-विक्षत योद्धाओं की उपमा लाल तरबूज से दी है। यद्यपि यह उपमा बहुत उत्कृष्ट कोटि की तो नहीं मानी जा सकती तथापि कवि को घायल योद्धाओं के घावों से रक्त व मांस का दिखाई देना-कटे हुए लाल तरबूज के जैसा ही दिखाई देता है निशितैर्विशिखैभिन्नवपुषः परितो भयाः ।। सेधानुकारता भेजु: शस्त्रधातास्तचेतनाः ।। ४, १७६ ।। इति । इस काव्य में उपस्थित युद्धवर्णन पर आलोचनात्मक दृष्टिपात करने पर यह ज्ञात होता है कि यहां युद्ध-वर्णन में रहने वाले परम्परागत सभी वर्ण्य विषयों का वर्णन नहीं किया गया है। जैसे युद्ध होने के पूर्व शत्रुपक्ष के यहाँ उनकी पराजय के सूचक चिह्नों, अपशकुनों का होना, सैनिकों का युद्ध के लिए प्रस्थान करते समय अपनी प्रेयसियों से मिलना, आकमण की तैयारी- युद्धप्रयाण, युद्धास्त्र, हाथी, घोड़े, योद्धाओं तथा सैनिकों का यथास्थान निर्धारण; य नमल यद्ध से धलि का उड़ना, योगिनि, काली, भूतप्रेत आदि का मुण्डधारण, देवताओं द्वारा देखना, पुष्पवर्षा, युद्धभूमि से घायलों को उठाना, घायलों की देखभाल, सन्ध्या को युद्ध बन्द करना, युद्धभूमि में पशुपक्षियों का आना आदि बातों का उल्लेख । इन सभी वर्ण्य-विषयों का वर्णन तो कवि पद्मसुन्दर ने अपने युद्ध-चित्र में नहीं किया है, फिर भी पद्मसुन्दर ने युद्ध का जो चित्रण आँखों के सम्मुख उपस्थित किया है, वह बड़ा ही सजीव, ओजपूर्ण एवं मार्मिक बन पड़ा है। 1. जैसा कि विवरण प्राप्त होता है, देखिए - संस्कृत महाकाव्य की परंपरा, मुसलगांवकर, वाराणसी, १९६९, पृ. ४०१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002632
Book TitleParshvanatha Charita Mahakavya
Original Sutra AuthorPadmasundar
AuthorKshama Munshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1986
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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