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रानी वामा की गर्भावस्था का वर्णन
कवि ने रानी की गर्भावस्था का वर्णन अत्यन्त संक्षिप्त रूप में किया है। संस्कृत के विदग्ध महाकाव्यों में गर्भावस्था के लक्षण व गर्भवती रानियों का जो विस्तृत रूप से चित्रण पाया जाता है, वह यहाँ प्राप्त नहीं है। फिर भी कवि ने गर्भवती नारी को क्या करना चाहिए, कैसे रहना चाहिए और गर्भावस्था के समय उसका जो अनुपम सौन्दर्य होता है उसका चित्रण अवश्य सुन्दरता के साथ किया है।
रानी की गर्भावस्था की खबर जब उसकी सखियों को पड़ती है तो वे अनेकों प्रकार के उपक्रमों से अत्यन्त व्यस्त दीख पड़ती हैं ।
कोई सखी रानी को ताम्बूल देती थी, कोई स्नान कराने का उद्यत थी, कोई उसे सजा रही थी, कोई सखी रानी को 'धीरे बोले।' व 'धीरे चलो' ऐसा सप्रेम आग्रह से समझाती थी, काई रानी की शयूया तैयार करती थी तो अन्य कोई उसके पांव दबाने में व्यस्त थी । एक सखी वस्त्रालंकार, आभूषण. भोजन आदि से रानी का सत्कार करती थी तो उसी उसके ठहरने पर उसे आसन देती थी । सखियों द्वारा सेवा की जाती वह रानी इन्द्राणी की भांति शोभित थी
उपास्यमाना देवीभिदें वीन्द्राणीव साऽऽलिभिः ।
अन्तर्वत्नी सुखं तस्थौ विहाराहारसेवनैः ॥ ३, ५७ ।। वह रानी गर्भावस्था के समय अत्यन्त सुन्दर दिखाई देती थी। उसका मुख कमल के समान सुन्दर और सुरभियुक्त था
नृपति तृपत् तस्या वदन पद्मसौरभम् ।
आघ्रायालिरिवोदभिन्नं नलिनीनलिनादरम् ॥ ३, ६३ ॥ एक अन्य स्थान पर कवि कहता है कि रानी वामा तीनों लोकों में चन्द्र की कला की भांति कान्ति से देदीप्यमान दिखलाई देती थी
कला चान्द्रीव रोचिभिर्भासमाना जिनाम्बिका ॥ ३.६५ ।। गर्भ को धारण कर रानी उसी प्रकार शोभित थी जिस प्रकार खान की भूमि रत्न को धारण करने पर शोभित होती है
____ दधती सा बभौ गर्भ रत्नमाकरभूरिव ।। ६, ६२ ।। उसी प्रकार उस गभस्थ शिशु ने भी माता को किसी प्रकार की बाधा नहीं पहुंचाई अर्थात् माता का गर्भावस्था का काल बहुत ही सुखरूप था -
___ मातुर्वाधां स नाकार्षीदिवाग्निबिम्बितोऽम्बुनि ।।३, ६२ ।। इसके पश्चात् गर्भ की शोभा का वर्णन करता हुआ कवि कहता है कि स्फुट स्फटिक के घर में रहे रत्न के प्रदीप की तरह तीन शान की ज्योत से उज्ज्वल वह माता के पेट में शोभित था
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