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________________ युद्धस्थल में उपस्थित, युद्ध के वातावरण में अति उत्साही हो गये घोड़े, रथ, हाथी आदि का वर्णन बहुत ही सुन्दर किया गया है । देखिएघोड़ों का वर्णन - लिलवायषवः स्वीयर्गत रिव नभोगणम् । अपावृत्तादिभिहे षाघोषा वाहा विरेजिरे ।। ४, १३८ ।। रथ का वर्णन - चक्रेणकेन चक्री चेद्वयं चक्रद्वयीभूतः । वदन्त इति चीत्कारै रथा जेतुमिवाभ्ययुः ॥ ४, १३९ ।। हाथियों का वर्णन - विपक्षेभमदामोदमाघ्राय प्रतियोद्धराः । सिन्धुरा निर्ययुर्योद्धं जङ्गमा इव भूधराः ॥ ४, १४० ।। धनुर्धारी योद्धाओं को नाटक के सूत्रधार की उपमा से अलंकृत कर कवि कहता है धानुष्का रणनाट्यस्योपक्रमे सूत्रधारवत् । निनदर्यनि:स्वान रणरङ्गमवीविशन् ॥ ४, १४१ ।। इसके पश्चात् धनुर्धारियों के द्वारा सर्वप्रथम छोडे गये तीक्ष्ण बाणों की तुलना उपमा व उत्पेक्षा के साथ रंगभवन में सूत्रधार के द्वारा सव'प्रथम बरसाए गये श्वेत पुष्पों से करता हा कवि-एक ही श्लोक में ओजगुण और प्रसादगुण का मानो मेल करता है। कहाँ बाणों की तीक्ष्णता और कहां पुष्पों की सुकोमलता ! देखिए रणरङ्गमनुप्राप्य धन्विभिः शितसायकाः । बभुः प्रथमनिर्मुक्ताः कुसुमप्रकरा इव ।। ४, १४२ ।। अब युद्ध में बाण किस प्रकार त्वरित गति से योद्धाओं के कमानों से गिर रहे हैं, उसका एक चित्रण देखिए लघुकृत्यकरा बाणाः प्रगुणा दूरदर्शिनः । क्षिप्रोड्डीनाः खगा: पेतुः खगास्तीक्ष्णानना इव ॥ ४, १४३ ।। एवं कश्चित् परेरितान् बाणान् अर्धचन्द्रनिभैः शरैः ।। चिच्छेद सम्मुखायाताल्लघुहस्तो धनुर्धरः ।। ४, १४४ ।। कबि ने बाणों की उपमा दूतों से दी है और यहाँ उनका प्रत्येक विशेषण श्लिष्ट है कर्णलग्ना गुणयुताः सपत्ना शीघ्रगामिनः । दूता इव शरा रेजुः कृतार्थाः परहृदूगताः ।। ४, १४९ ।। दोनों सेनाओं के तुमुल युद्ध वर्णन की छटा निहारिए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002632
Book TitleParshvanatha Charita Mahakavya
Original Sutra AuthorPadmasundar
AuthorKshama Munshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1986
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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