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________________ ...! यहाँ कवि कहता है कि केले का खम्भा जो अपनी सुकोमलता ६ चिकनाहट के लिए सर्वप्रसिद्ध है वह भी प्रभावती की जांध के अतिशय सौन्दय' को देख, अत्यधिक शर्मिन्दा हो गया और फलस्वरूप वह वायु, धूप, शीत आदि कष्टों से अडिग, जंगल में तपस्या कर रहा है - तदीयजघाद्वयदीप्तिनिर्जिता वनं गता सा कदली तपस्यति । चिराय वातातपशीतकर्णरधःशिरा नूनमखडितव्रता ।। ५, १३ ।। प्रभावती की यौवनपूर्ण देह के सौन्दर्य के विषय में यह श्लोक देखिए जहाँ उसके स्तनों की उपमा देवनदी गंगा के दोनों तट पर स्थित चकवा-चकवी के जोड़े से दी गई है: विस:रितारद्युतिहारहारिणौ स्तनौ नु तस्याः सुषमामवापतुः । सुरापगातीरयुगाश्रितत्रय तो रथाङ्गयुग्मस्य तु कुकुमार्चितौ ।।५, १९ ।। प्रभावती के सुन्दर कुछ झुके हुए कन्धों का सौन्दर्य देखिए जहाँ उसके कन्धों की तुलना मेरुपर्वत के शिखर के तटरहित दो पाश्वों से तथा हस के दो पंखों से की गई है तदंसदेशौ दरनिम्नतां गतौ सुराद्रिकुटातटपार्श्वयोः श्रियम् । बलादिवाऽऽजह्रतुरात्तसङ्गरौ निजश्रिया भत्सितह सपक्षती ।। ५, २३ ॥ और जांघों के संदर्भ में कवि प्रभावती की जांघों की तुलना व्यतिरेक ध्वनि से हाथी की सूद की विभ्रमगति से करता हुआ कहता है अनन्यसाधारणदीप्तिसुन्दरौ परस्परेणोपमिती रराजतुः । ध्रुवं तदूरु विजितेन्द्रवारणप्रचण्डशुण्डायतदण्ड विभ्रमौ ।। ५, १४ ॥ आदि । कवि पद्मसुन्दर ने प्रभावती के सौन्दर्य का जो वर्णन किया है वास्तव में उच्च कोटि का तथा अद्वितीय है। प्रभावली के अंग-अग के वर्णन में प्रयुक्त प्रत्येक उपभा उचित व सन्दर है। इस प्रकार कविः का यह सौन्दर्य-चित्रण संस्कृत के बड़े बड़े कवियों के सौन्दर्य-चित्रणों में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है । पार्श्व के सौन्दर्य का वर्णन (शैशवावस्था व कुमारावस्था) कवि पदमसुन्दर ने अपने महाकाव्य में पार्श्व के आन्तर और बाह्य-दोनों ही प्रकार के सौन्दर्यो का वर्णन किया है । बाह्य सौन्दर्य के चित्रण में कचि में नामिका की ही भांति पार्श्व का नखशिख वर्णन किया है । सौन्दर्य वर्णन के समय कषि ने पार्श्व के शरीर के किसी भी अंग को अपनी लेखनी से वंचित नहीं रखा है। कवि ने अङ्गों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002632
Book TitleParshvanatha Charita Mahakavya
Original Sutra AuthorPadmasundar
AuthorKshama Munshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1986
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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