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प्रभावती के वर्णन में
रदच्छदोऽस्याः स्मितदीप्तिभासुरो यदि प्रवाल: प्रतिबद्धहीरकः ।
तदोपमीयेत विजित्य निर्वतः सुपक्वबिम्बं किल बिम्बतां गतम् ॥ ५, १७ ।। पार्वती के वर्णन में
पुष्पं प्रवालोपहितं यदि स्यान्मुक्ताफलं वा स्फुटविद्रमस्थम् । ततोऽनुकुर्याद्विशदस्य तस्यास्ताम्रौष्ठपर्यस्तरुचः स्मितस्य ॥ १, ४४ ॥
चन्द्र व कमल के दोषयुक्त होने के कारण लक्ष्मी प्रभावती के मुख को निष्कलंक समझ मानो उसमें निवास करती थी। देखिए -
विहाय चन्द्र जडपङ्कपङ्किलं सरोरुहं पङ्ककलङ्कषितम् ।
उवास लक्ष्मीरकलङ्कमुच्चकैरिति प्रतक्ये व तदीयमाननम् ॥ ५, २५ ॥ यही बात कवि कालिदास इन शब्दों में कहते हैं--
चन्द्रं गता पद्मगुणान्न भुङ्क्ते पद्माश्रिता चान्द्रमसीमभिख्याम् । उमामुखं तु प्रतिपद्य लोला द्विसंश्रयां प्रीतिमवाप लक्ष्मी: ॥ १. ४३ ।।
सष्टि के सम्पूर्ण सौन्दर्य को एक ही स्थान पर देखने की इच्छा से ब्रह्मा अथवा विधाता ने सुन्दरता की मूर्ति प्रभावती (और) पार्वती को बनाया । देखिए प्रभावती का वर्णन--
समग्रसर्गाद्भुतरूपसम्पदा दिदृक्षयै कत्रविधिय॑धादिव ।
जगत्त्रयीयौवनमौलिमालिकामशेषसौन्दर्य परिष्कृत नु ताम् ॥ ५, ३५ ।। पार्वती का वर्णन
सर्वोपमाद्रव्यसमुच्चयेन यथाप्रदेशं विनिवेशनेन ।
सा निर्मिता विश्वसृजा प्रयत्नादेकस्थसौन्दर्यदिदृक्षयेव ।। १, ४९ ।। आदि । कवि पद्मसुन्दर के प्रभावती के सौन्दर्य वर्णन को कवि कालिदास की पार्वती के सौन्दर्य वर्णन के साथ रख कर पढने से हमें यह स्पष्टतः ज्ञात होता है कि कवि पद्मसुन्दर कविश्रेष्ठ कालिदास से प्रभावित हैं और उन्होंने कवि कालिदास के पार्वती वर्णन से ही प्रेरणा लेकर अपनी नायिका के सौन्दर्य का चित्र रचा है । पद्मसुन्दर श्री हर्ष से भी प्रभावित लगते हैं पर वस्तुत: तो वात यह है कि स्वयं श्रीहर्ष के दमयन्ती सौन्दर्य वर्णन पर कालिदास की छाप लगी हुई है अत: साम्य लक्षित होना स्वाभाविक ही है ।
कवि पद्मसन्दर के प्रभावती के सौन्दर्य का वर्णन करने वाले अत्यन्त हृदयस्पर्शी श्लोक निम्नलिखित हैं:
कवि प्रभावती की जाँघों का सौन्दर्य निस्सीम बताता है । नायिका की जांघों की उपमा दो ही उपमानों से दी जाती है, एक तो हाथी की सूद से अथवा केले के खम्भे से।
1 कालिदास का यह श्लोक देखिए :
नागेन्द्रहस्तास्त्वचि कर्कशत्वादेकातशैत्यास्कदलीविशेषाः । लब्ध्वापि लोके परिणाहि रूपं जातास्तदूर्वोरुपमानबाह्या: ।। कुमारसंभव, १,३६।।
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